Wednesday, 29 May 2024

जब सब मिलकर ही प्रकृति को नष्ट कर रहे है तो कैसे मिलेगा गर्मी से राहत

औद्योगिक क्रांति के नाम पर जो जंगलों व वनों तथा नदी का संहार हो रहा है उससे तो लग रहा है कि इस भीषण गर्मी से राहत मिलने नामुमकिन है । हां तभी कुछ सोचा जा सकता है जब देश की कम से कम आधी आबादी इस दिशा में काम करे । वनों को बचाने का, उद्योग जितने उससे ज्यादा न खुले इसकी व्यवस्था करने का, जंगलों को बचाने का , नदियों को बचाने का पानी को बचाने का, साथ ही उद्योगों से निकलने वाले कचरे गंदगी व प्रदूषण पर लगाम लगाने हैती सरकार पर दबाव बनाने का । 
सरकार से कुछ नही होगा बल्कि सरकार एक झटके में सारे किए कराए पर पानी फेर देगी। आज नही तो कल पूरा खनिज संपदा जमीन से निकाल लेंगे ये तो तय है । उसे निकालने के लिए गांव खाली कराएंगे और जंगल काटेंगे ये भी सत्य है । और सारा खनिज जंगलों के नीचे है ये भी तय है । उद्योग लगाएंगे तो उद्योगों को पानी चाहिए तो नदियों का पानी भी बेचेंगे । जहां नही होगा वह नदी जोड़ों अभियान के नाम से उस तरफ से नदी को ले जाएंगे जहां उद्योग लजे होंगे या भविष्य में लगने वाले होंगे । और वहां ले जाकर पानी को बेचेंगे । 
फैक्ट्री से जो प्रदुषण निकलेगा उसे ये कभी कंट्रोल नही करेंगे । 
लोगों को वृक्षारोपण करने व पानी बचाने के लिए अभियान चालाएँगे । खुद दोहन करेंगे उद्योगपतियों के साथ मिलकर । उनके पैसे से देश मे सरकारें चलेंगी । 
आम आदमी पौधा लगेगा सरकार काट देगी । ये निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है । 
नए जो पौधे सरकार लगा रही है ये पर्यावरण व जैव विविधता के अनुकूल नही है । ये जानवरों या पशु पक्षियों के लिए भी अनुकूल नही । ये सिर्फ इमारती लकड़ी वाले पौधे ही लगा रहे है या प्रमोट कर रहे है या सिर्फ झाड़ियां जिनका कोई काम नही । इमारती लकड़ी को को ये बाद में काट लेगे अपनी जरूरत के हिसाब से । 
अब जनता क्या करेगी ये सोचना है पौधे बचाने के लिए आंदोलन करेगी तो जेल में डाल देंगे। पौधे लगाएंगे तो कितना और कहां जमीनों पर भी तो सरकार के सहयोग से माफियाओं का ही कब्जा है ।खेती को समाप्त कर औद्योगिक क्रांति लाना चाह रहे है । तो औद्योगिक क्रांति आएगी तो पर्यावरण का बचना नामुमकिन है । 
ऊपर में बैठे रणनीति कर सैफ दोहन में लगे हैं उनका कोई इरादा नही है देश व देश की जनता के जीवन की सुरक्षा से । 

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