कल हाथियों का एक झुंड सरगुजा जिले के उदयपुर के जंगल मे देखा गया । खबर यह भी है कि हाथियों के झुंड ने बाइक सवार एक परिवार को कुचल दिया जिसमें एक बच्चा भी है । मृतक परिवार के प्रति हमारी गहरी संवेदना है ।
हाथियों के झुंड के देखे जाने के तुरंत बाद से ही उदयपुर के युवा जागरूक साथी लोग अपने व्हाट्सएप व फोन के माध्यम से अपने अपने लोगों को सतर्क रहने के लिए सूचना देने लगे । बावजूद इसके एक परिवार के साथ दुर्घटना घटित हो ही गया ।
एक लंबे समय से अविभाजित सरगुजा जिले में हाथियों का एक दल लगातार उड़ीसा से रायगढ़ व जशपुर के रास्ते होते हुए अविभाजित सरगुजा के कुसमी सामरी के जंगल मे पहुंचा। गांवों में भी प्रवेश किया नुकसान भी किया । पहले पटाखे फोड़ कर हाथी को डराते थे वे डर कर भागते भी थे लेकिन यह डर ज्यादा दिन नही चला। हाथियों ने पटाखे से डरना छोड़ दिया । फिर बिजली के तार लगाए गए । लेकिन शुरुआत में कुछ दिन यह भी सफल रहा लेकिन बाद में यह भी तरीका फेल हो गया ।
और हाथी धीरे-धीरे सरगुजा के जिला मुख्यालय अम्बिकापुर में शहर के अंदर भी दस्तक दे दी ।
उसी समय अम्बिकापुर से अमलेंदु मिश्रा व उनके बड़े भाई हाथियों पर काफी काम किए । इसी सरगुजा में हाथियों के ऊपर फ़िल्म बना माइक पांडेय को आस्कर अवार्ड भी मिला ।
ये सबकुछ हुआ पर समस्या जस की तस बनी रही । वन विभाग में हाथियों के दल को रोकने के लिए और प्रभावित परिवारों के सहायता के लिए योजनाएं खूब बनी काम क्या हुआ क्या नही यह तो वह विभाग जाने । पर हाथियों के संख्या में लगातार बढ़ोतरी हुई और उनके आवाजाही में भी वृद्धि हुई ।
जहां वे सरगुजा के एक क्षेत्र तक सीमित थे वे धीरे-धीरे छत्तीसगढ़ राज्य के कई जिलों में पहुंच गए । उत्तर छत्तीसगढ़ से वे दक्षिण छत्तीसगढ़ तक अपना साम्राज्य का विस्तार कर लिया । आज वे सरगुजा के मैनपाट में लखनपुर और उदयपुर में अलग -अलग दल उपलब्ध है वही दक्षिण बस्तर के कांकेर जिले के चारामा व भानुप्रतापपुर विकासखण्ड में कई दिनों से डेरा डाले हुए ।
वन अमला अपना काम कर रहा है क्या कर रहा है इस पर आगे दूसरे लेख में लिखेंगे । पर यहां यह जानना जरूरी है कि ऐसा क्यों हो रहा है कि जंगली जानवर गांव व शहर की ओर अपना रुख अपना रहे है । जो जानवर कभी आदमी से डरते थे आज वे बिना डरे घूम रहे हैं। हम जो देखते उसकी नजर में वनों व जंगलों में मनुष्यों का हस्तक्षेप आवश्यकता से ज्यादा बढ़ गया है । गीता में कहा है कि *शेर वनों की सुरक्षा करता और वन शेर की सुरक्षा करता है* ।
1- वनों की अंधाधुंध कटाई - वनों से भारतीय पेड़ों को काट कर समाप्त कर दिया जा रहा है जो पर्यावरण के अनुकूल हैं जिन पर पक्षी निवास करते है, जिनसे पशु पक्षियों को खाने की व्यवस्था होती है ।
2- औद्योगिकरण का वन क्षेत्र की ओर विस्तार -वन क्षेत्रों में खनिज संपदा प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है । सरकार व बड़े उद्योगपतियों की नजर इधर है । सरकार को इससे एक बड़ी आय होती जिसके लिए इसका दोहन करते है । और इन्ही खनिजों से बनने वाले सामानों के लिए उद्योग लगाए जाते है जिसके लिए भी भूमि सरकार वन क्षेत्रों से ज्यादा उपलब्ध कराती है । जिससे वनों का नुकसान होता है ।
3- माइंस के कारण - छत्तीसगढ़ माइंस व मिनरल्स से भरा पूरा राज्य है । यहां कोयला,लोहा, बाक्साइड,अभ्रक, हीरा आदि प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है इन खनिज संपदा का दोहन करने के जंगल उजाड़े जा रहे है और माइंस का जाल विछाया जा रहा है । खदानों से जंगल तो खत्म होते है उनके खुदाई में ब्लास्ट करने से भी जानवरो को डर लगता है जिससे वे गांवों व शहर की तरफ निकल जाते है ।
4- माइंस व उद्योगों द्वारा फैलाए जा रहे प्रदूषण - माइंस व उद्योग की स्थापना तो कर दी जाती है लेकिन इनसे निकलने वाले धुंवे, कचरे व गंदगी प्रदूषण फैलाने का कार्य बड़े स्तर पर कर रहे है । जिससे जलवायु में परिवर्तन तेजी से हो रहा है । बढ़ते प्रदूषण का असर मनुष्य के साथ- साथ पशु पक्षियों के जीवन पर भी पड़ता है । इसके कारण भी पशु पक्षी पलायन करने को बाध्य हो जाते है ।
5- नदियों पर उद्योगों का कब्जा - नदियों के पानी का दोहन उद्योगों द्वारा किया जा रहा है जिससे जानवरों को पीने के लिए पानी आसानी से उपलब्ध नही हो पा रहा । पानी के तलाश में जानवर, पशु पक्षी गांव व शहर का रुख कर रहे है ।
6- वनोपज का दोहन - वनों से पशु पक्षियों के खाने वाले उपज को दोहन कर लिया जा रहा है जिससे जानवरों व पशु पक्षियों के लिए खाने की व्यवस्था वनों में नही हो पा रही इस कारण भी वे गांव व शहर का रुख कर रहे है ।
7- जलवायु परिवर्तन- जलवायु परिवर्तन के बड़ी वजह है। वन क्षेत्रों में पहले ठंड होती थी शीतलता होती थी जो अब समाप्त होते जा रही है । मौसम में परिवर्तन भी हो रहा है जिससे व्याकुल होकर जानवर, पशु पक्षी गांव व शहर कही भी जा रहे है ।
8- कांक्रीट का जाल - विकास के नाम पर जंगलों को काटकर चौड़ी -चौड़ी सड़कें बनाई जा रही है । गांवों में पक्के भवनों का जाल बिछ रहा है जिससे तापमान में भारी बदलाव आया है । अब जंगल क्षेत्र में भी दिन में भीषण गर्मी देखने व महसूस करने को मिल रही है । आदमी तो कुकर व एसी लगा के मस्त है । पर ये न बोलने वाले जानवर व पशु पक्षी कहां जाएं ।
उपाय
1- जानवरों के व्यवहार पर अध्ययन होना चाहिए
2- जानवरों के खान- पान, रहन सहन का अध्ययन होना चाहिए और वे जो चीजे खाते वो उन्हें प्राकृतिक रूप से जंगलों में मिल सके इसके लिए व्यवस्था बनानी चाहिए
3- भारतीय पौधों का रोपण किया जाना चाहिए जो पर्यावरण के साथ -साथ पशु पक्षियों के लिए भी अनुकूल हो ।
4- वनों के अंदर पीने के पानी की समुचित व्यवस्था करनी चाहिए
6- औद्योगिकरण व माइंस को कम किया जाना चाहिए
7- प्रदूषण न हो इसके उपाय किए जाने चाहिए
8- जानवरों से मानव हानि न हो इसके लिए सूचना प्रणांली विकसित किया जाना चाहिए ।
9- कांक्रीट का जाल बिछाना बंद हो पर्यावरण के अनुकूल विकास के रास्ते तलाशने चाहिए ।
10- पारम्परिक तौर तरीकों को उपयोग में लाना चाहिए उनको बढ़ावा भी दिया जाना चाहिए ।
11- वनों का विकास किया जाना चाहिए जो प्राकृतिक तरीके से ज्यादा हो । खरपतवार का उपयोग जैविक खाद के रूप में हो। ऐसे पौधे लगाए जाएं जिनके फलों को पशु पक्षी खा सके । पशु पक्षी कीड़े मकोड़े परागण अच्छी तरह करते है । अतएव ऐसे पौधे ज्यादा लजे जिनका परागण पशु पक्षियों व कीट पतंगों द्वारा होता है ताकि वृक्षों के लगाने में इनकी भी प्राकृतिक भूमिका हो । वनों के विकास में वाहक बने ।
संजय शर्मा
सोशल एक्टिविस्ट
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