Thursday, 30 September 2021

महामारी के कारण "एसडीजी के विभिन्न लक्ष्यों को प्राप्त करने में कठिनाई

रायपुर, 30 सितंबर, 2021 विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु पूर्व में सहस्राब्दी विकास लक्ष्य (एमडीजी) निर्धारित किया गया था, जो पूरी तरह से विकासशील देशों पर लागू होता था | लेकिन इसके ठीक विपरीत , सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) सभी देशों पर लागू होते हैं। एसडीजी के कार्यान्वयन में भारत की साढ़े पांच साल की प्रगति के मूल्यांकन से पता चलता है कि भारत को सतत उपभोग और उत्पादन (एसडीजी 12) के किसी भी उद्देश्य को पूरा करने के लिए प्रभावी निगरानी और डाटा संग्रह ढांचे की जरूरत है, 30 सितंबर, 2021 कट्स इंटरनेशनल जयपुर, अनमोल फाउंडेशन रायपुर व ताजी योजना आयोग के संयुक्त तत्वावधान में होटल बेबीलान इंटरनेशनल में आयोजित राज्य स्तरीय कार्यशाला में राज्य योजना आयोग, छत्तीसगढ़ के उपाध्यक्ष श्री अजय कुमार सिंह, जी ने मुख्य अतिथि के रूप में अपने मुख्य भाषण में कट्स इंटरनेशनल द्वारा किए गए अध्ययन के निष्कर्षों का उल्लेख करते हुए कहा कि महामारी के हानिकारक प्रभाव और अन्य कारकों के कारण, 2015 की तुलना में 2030 तक कई संकेतकों की स्थिति और खराब हो सकती है। प्राथमिक चिंता यह है कि एसडीजी 12 पर डेटा के ज्ञान, समन्वय और संग्रह और संकलन की कमी है। कट्स इंटरनेशनल के निदेशक श्री जॉर्ज चेरियन ने चिंता व्यक्त करते हुए अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि जिम्मेदार अधिकारियों के बीच ज्ञान की कमी के कारण कई राज्यों की स्थायी पहल की कई उपलब्धियों का पता नहीं चल पाता है, एसडीजी और इसकी प्रासंगिकता के बारे में एसडीजी रिपोर्टिंग में सक्रिय कुछ लोगों को छोड़कर रिपोर्ट नहीं किया जाता है। ।
विभिन्न विभागों के अधिकांश कर्मचारियों को पता नहीं कि एसडीजी क्या है। एसडीजी कार्यान्वयन में राज्य स्तर पर सबसे महत्वपूर्ण बाधाएं सरकारी अधिकारियों के बीच ज्ञान की कमी के साथ-साथ धन और तकनीकी कर्मचारियों की कमी के रूप में दिखाई देती हैं, जिसके परिणामस्वरूप खराब निगरानी और रिपोर्टिंग होती है। अगर इसे नजरअंदाज कर दिया जाता है, तो यह टिकाऊ खपत और उत्पादन के क्षेत्र में देश की उपलब्धियों और प्रयासों पर एक नकारात्मक तस्वीर दिखा सकता है। CUTS इंटरनेशनल का SDG 12 के सम्बन्ध में किया गया शोध "सतत उपभोग और उत्पादन - एक उपभोक्ता परिप्रेक्ष्य," उपभोक्ताओं के दृष्टिकोण से SDG 12 पर ध्यान केंद्रित करता है, एक गाइड के रूप में उपभोक्ता संरक्षण के लिए संयुक्त राष्ट्र दिशानिर्देश (UNGCP) का उपयोग करता है। अन्य उद्देश्यों के साथ इसकी परस्पर प्रकृति के कारण, यह सोचा गया था कि एसडीजी 12 के तहत किसी देश की प्रगति की जांच और विश्लेषण किसी भी अन्य लक्ष्य की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है। लगभग सभी लक्ष्य एसडीजी 12 से जुड़े हुए हैं, जिसका अर्थ है कि एजेंडा 2030 की ओर देश की प्रगति एसडीजी 12 द्वारा उठाई गई समस्याओं को ठीक से संबोधित और हल किए बिना पूरा नहीं किया जा सकता है। स्वीडिश सोसाइटी फॉर नेचर कंजर्वेशन (SSNC) के साथ साझेदारी में SDG 12 शीर्षक "सतत उपभोग और उत्पादन - एक उपभोक्ता परिप्रेक्ष्य" पर अध्ययन, मुख्य रूप से उपभोक्ता संरक्षण के लिए संयुक्त राष्ट्र दिशानिर्देश (UNGCP) के आधार पर SDG 12 को एक उपभोक्ता दृष्टिकोण से देखा गया। अन्य लक्ष्यों के साथ जुड़ाव के कारण, यह सोचा गया था कि एसडीजी 12 का अध्ययन करना किसी अन्य लक्ष्य का अध्ययन करने से अधिक महत्वपूर्ण था। 2030 तक एसडीजी 12 में उठाई गई समस्याओं को ठीक से हल किए बिना पूरा नहीं किया जा सकता है,| डॉ. के. सुब्रमण्यम, सदस्य, राज्य योजना आयोग, छत्तीसगढ़ ने इस बात पर प्रकाश डाला कि टिकाऊ या जिम्मेदार उपभोग व्यवहार में दुनिया को बदलने की क्षमता है। टिकाऊ उपभोग की आदतों और प्रवृत्तियों को बढ़ावा देकर सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए उपभोक्ताओं की भागीदारी महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि पर्यावरण संबंधी मार्किंग सिस्टम को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। अनूप कुमार श्रीवास्तव, सदस्य सचिव, राज्य योजना आयोग, छत्तीसगढ़ ने एसडीजी पर सरकार की विभिन्न योजनाओं और पहल पर प्रकाश डाला। एक सफल सतत विकास एजेंडा के लिए सरकार, व्यापार और नागरिक समाज के बीच भागीदारी आवश्यक है।, सतत विकास लक्ष्यों की उपलब्धि का समर्थन करने के लिए ज्ञान, विशेषज्ञता, प्रौद्योगिकी को जुटाने और साझा करने के लिए बहु-हितधारक साझेदारी की आवश्यकता है। अक्षय ऊर्जा, पर्यावरण, शहरी विकास, कृषि, एनआरएलएम, पर्यटन, वन और अन्य सहित 12 सरकारी विभागों ने अपने कार्यक्रमों व् अनुभवो को तकनीकी सत्र के दौरान रखा, अमर दीप सिंह, सीनियर प्रोग्राम ऑफिसर कट्स द्वारा संचालित एसडीजी12 से संबंधित विशिष्ट प्रगति और कार्यक्रमों को साझा किया। उन्होंने उल्लेख किया कि छत्तीसगढ़ विभिन्न क्षेत्रों और विभागों की सर्वोत्तम प्रथाओं और पहलों का दस्तावेजीकरण करके सतत उपभोग और उत्पादन (एसडीजी 12) पर अपने प्रदर्शन में सुधार कर सकता है। CUTS के अमित बाबू ने कार्यशाला में अध्ययन को प्रस्तुत किया | कार्यक्रम का संचालन व आभार अनमोल फाउंडेशन के निदेशक श्री संजय शर्मा ने किया | कार्यक्रम 12 शासकीय विभागों के साथ – साथ कई जिलों से स्वैच्छिक संस्थाओं के प्रतिनिधि शामिल हुए |

Tuesday, 21 September 2021

संगम महिला बहुउद्देश्यीय सहकारी समिति द्वारा घरेलू उत्पाद का निर्माण

संगम महिला बहुउद्देशीय सहकारी समिति करहीकछार के  सदस्यों से अनमोल फाउंडेशन के निदेशक श्री संजयशर्मा जी ने मुलाकात की और उनके काम के बारे में जाना एवं सदस्यों को प्रोत्साहित किये। समिति की महिलाएं कई घरेलू उत्पाद का निर्माण स्वंय कर रही है जिनमे हैंडवाश, सेनेटरी नैपकिन, रागी, सत्तू आदि प्रमुख है । समिति की महिलाओं द्वारा किए जा रहे प्रयास सराहनीय है । उनके द्वारा किए जा रहे इन प्रयासों को सरकार को देखना चाहिए व उन्हें प्रोत्साहित करने हेतु शासन की योजनाओं से सहयोग भी करना चाहिए ।समिति की महिला सदस्यों ने अपने द्वारा बनाये हुए उत्पाद श्री संजयशर्मा जी को सादर भेंट किये।

Wednesday, 15 September 2021

बीएनपैलेश रायपुर में ग्राम अधिकार मंच की बैठक

रायपुर : ग्राम अधिकार मंच के पदाधिकारियों के साथ बी एन पैलेश में बैठक कर मंच को सशक्त व आत्मनिर्भर बनाने पर विस्तार से चर्चा हुई । सभी पदाधिकारियों ने अपने अपने सुझाव दिए । 
मंच को शसक्त बनाने हेतु मुट्ठी चावल, सदयता शुल्क, श्रमदान से कार्यक्रम का संचालन पर चर्चा के साथ - साथ लोगो ने अपने खेत मे कम से कम 10 डिसमिस जमीन पर मंच के लिए अनाज पैदा करेंगे । जिससे मंच का कोष तैयार होगा । 
जल्द से जल्द मंच का संसाधन केंद्र के निर्माण को लेकर भी चर्चा की गई जिसे बरसात के बंद होने के बाद उसे पर काम शुरू किया जाने का निर्णय हुआ । निर्माण में संगठन के सभी सदस्य श्रमदान कर सहभागिता करेंगे । सभी पदाधिकारियों ने मंच के संस्थापक श्री संजयशर्मा जी के कार्यक्षेत्र में आने का न्योता दिया । इस अवसर पर मंच संयोजक श्री राकेश राय व अध्यक्ष श्री सुरित साय जी उपस्थित रहे । 

Wednesday, 8 September 2021

उदयपुर के जंगल में दिखे हाथियों का एक दल - आखिर गांव व शहरों की ओर क्यो रुख कर रहे जंगली जानवर

सरगुजा उदयपुर- हाथी शब्द सुनकर ही विशालकाय रूप सामने आ जाता है । सोचिए जब ये आपके सामने हो तो क्या हालात होंगे ।
कल हाथियों का एक झुंड सरगुजा जिले के उदयपुर के जंगल मे देखा गया । खबर यह भी है कि हाथियों के झुंड ने बाइक सवार एक परिवार को कुचल दिया जिसमें एक बच्चा भी है । मृतक परिवार के प्रति हमारी गहरी संवेदना है । 
हाथियों के झुंड के देखे जाने के तुरंत बाद से ही उदयपुर के युवा जागरूक साथी लोग अपने व्हाट्सएप व फोन के माध्यम से अपने अपने लोगों को सतर्क रहने के लिए सूचना देने लगे । बावजूद इसके एक परिवार के साथ दुर्घटना घटित हो ही गया । 
एक लंबे समय से अविभाजित सरगुजा जिले में हाथियों का एक दल लगातार उड़ीसा से रायगढ़ व जशपुर के रास्ते होते हुए अविभाजित सरगुजा के कुसमी सामरी के जंगल मे पहुंचा। गांवों में भी प्रवेश किया नुकसान भी किया । पहले पटाखे फोड़ कर हाथी को डराते थे वे डर कर भागते भी थे लेकिन यह डर ज्यादा दिन नही चला। हाथियों ने पटाखे से डरना छोड़ दिया । फिर बिजली के तार लगाए गए । लेकिन शुरुआत में कुछ दिन यह भी सफल रहा लेकिन बाद में यह भी तरीका फेल हो गया । 
और हाथी धीरे-धीरे सरगुजा के जिला मुख्यालय अम्बिकापुर में शहर के अंदर भी दस्तक दे दी । 
उसी समय अम्बिकापुर से अमलेंदु मिश्रा व उनके बड़े भाई हाथियों पर काफी काम किए । इसी सरगुजा में हाथियों के ऊपर फ़िल्म बना माइक पांडेय को आस्कर अवार्ड भी मिला । 
ये सबकुछ हुआ पर समस्या जस की तस बनी रही । वन विभाग में हाथियों के दल को रोकने के लिए और प्रभावित परिवारों के सहायता के लिए योजनाएं खूब बनी काम क्या हुआ क्या नही यह तो वह विभाग जाने । पर हाथियों के संख्या में लगातार बढ़ोतरी हुई और उनके आवाजाही में भी वृद्धि हुई । 
जहां वे सरगुजा के एक क्षेत्र तक सीमित थे वे धीरे-धीरे छत्तीसगढ़ राज्य के कई जिलों में पहुंच गए । उत्तर छत्तीसगढ़ से वे दक्षिण छत्तीसगढ़ तक अपना साम्राज्य का विस्तार कर लिया । आज वे सरगुजा के मैनपाट में लखनपुर और उदयपुर में अलग -अलग दल उपलब्ध है वही दक्षिण बस्तर के कांकेर जिले के चारामा व भानुप्रतापपुर विकासखण्ड में कई दिनों से डेरा डाले हुए । 
वन अमला अपना काम कर रहा है क्या कर रहा है इस पर आगे दूसरे लेख में लिखेंगे । पर यहां यह जानना जरूरी है कि ऐसा क्यों हो रहा है कि जंगली जानवर गांव व शहर की ओर अपना रुख अपना रहे है । जो जानवर कभी आदमी से डरते थे आज वे बिना डरे घूम रहे हैं। हम जो देखते उसकी नजर में वनों व जंगलों में मनुष्यों का हस्तक्षेप आवश्यकता से ज्यादा बढ़ गया है । गीता में कहा है कि *शेर वनों की सुरक्षा करता और वन शेर की सुरक्षा करता है* । 
1- वनों की अंधाधुंध कटाई - वनों से भारतीय पेड़ों को काट कर समाप्त कर दिया जा रहा है जो पर्यावरण के अनुकूल हैं जिन पर पक्षी निवास करते है, जिनसे पशु पक्षियों को खाने की व्यवस्था होती है । 
2- औद्योगिकरण का वन क्षेत्र की ओर विस्तार -वन क्षेत्रों में खनिज संपदा प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है । सरकार व बड़े उद्योगपतियों की नजर इधर है । सरकार को इससे एक बड़ी आय होती जिसके लिए इसका दोहन करते है । और इन्ही खनिजों से बनने वाले सामानों के लिए उद्योग लगाए जाते है जिसके लिए भी भूमि सरकार वन क्षेत्रों से ज्यादा उपलब्ध कराती है । जिससे वनों का नुकसान होता है । 
3- माइंस के कारण - छत्तीसगढ़ माइंस व मिनरल्स से भरा पूरा राज्य है । यहां कोयला,लोहा, बाक्साइड,अभ्रक, हीरा आदि प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है इन खनिज संपदा का दोहन करने के जंगल उजाड़े जा रहे है और माइंस का जाल विछाया जा रहा है । खदानों से जंगल तो खत्म होते है उनके खुदाई में ब्लास्ट करने से भी जानवरो को डर लगता है जिससे वे गांवों व शहर की तरफ निकल जाते है । 
4- माइंस व उद्योगों द्वारा फैलाए जा रहे प्रदूषण - माइंस व उद्योग की स्थापना तो कर दी जाती है लेकिन इनसे निकलने वाले धुंवे, कचरे व गंदगी प्रदूषण फैलाने का कार्य बड़े स्तर पर कर रहे है । जिससे जलवायु में परिवर्तन तेजी से हो रहा है । बढ़ते प्रदूषण का असर मनुष्य के साथ- साथ पशु पक्षियों के जीवन पर भी पड़ता है । इसके कारण भी पशु पक्षी पलायन करने को बाध्य हो जाते है । 
5- नदियों पर उद्योगों का कब्जा - नदियों के पानी का दोहन उद्योगों द्वारा किया जा रहा है जिससे जानवरों को पीने के लिए पानी आसानी से उपलब्ध नही हो पा रहा । पानी के तलाश में जानवर, पशु पक्षी गांव व शहर का रुख कर रहे है । 
6- वनोपज का दोहन - वनों से पशु पक्षियों के खाने वाले उपज को दोहन कर लिया जा रहा है जिससे जानवरों व पशु पक्षियों के लिए खाने की व्यवस्था वनों में नही हो पा रही इस कारण भी वे गांव व शहर का रुख कर रहे है । 
7- जलवायु परिवर्तन- जलवायु परिवर्तन के बड़ी वजह है। वन क्षेत्रों में पहले ठंड होती थी शीतलता होती थी जो अब समाप्त होते जा रही है । मौसम में परिवर्तन भी हो रहा है जिससे व्याकुल होकर जानवर, पशु पक्षी गांव व शहर कही भी जा रहे है । 
8- कांक्रीट का जाल - विकास के नाम पर जंगलों को काटकर चौड़ी -चौड़ी सड़कें बनाई जा रही है । गांवों में पक्के भवनों का जाल बिछ रहा है जिससे तापमान में भारी बदलाव आया है । अब जंगल क्षेत्र में भी दिन में भीषण गर्मी देखने व महसूस करने को मिल रही है । आदमी तो कुकर व एसी लगा के मस्त है । पर ये न बोलने वाले जानवर व पशु पक्षी कहां जाएं ।
उपाय 
1- जानवरों के व्यवहार पर अध्ययन होना चाहिए
2- जानवरों के खान- पान, रहन सहन का अध्ययन होना चाहिए और वे जो चीजे खाते वो उन्हें प्राकृतिक रूप से जंगलों में मिल सके इसके लिए व्यवस्था बनानी चाहिए 
3- भारतीय पौधों का रोपण किया जाना चाहिए जो पर्यावरण के साथ -साथ पशु पक्षियों के लिए भी अनुकूल हो ।
4- वनों के अंदर पीने के पानी की समुचित व्यवस्था करनी चाहिए 
6- औद्योगिकरण व माइंस को कम किया जाना चाहिए 
7- प्रदूषण न हो इसके उपाय किए जाने चाहिए 
8- जानवरों से मानव हानि न हो इसके लिए सूचना प्रणांली विकसित किया जाना चाहिए । 
9- कांक्रीट का जाल बिछाना बंद हो पर्यावरण के अनुकूल विकास के रास्ते तलाशने चाहिए । 
10- पारम्परिक तौर तरीकों को उपयोग में लाना चाहिए उनको बढ़ावा भी दिया जाना चाहिए । 
11- वनों का विकास किया जाना चाहिए जो प्राकृतिक तरीके से ज्यादा हो । खरपतवार का उपयोग जैविक खाद के रूप में हो। ऐसे पौधे लगाए जाएं जिनके फलों को पशु पक्षी खा सके । पशु पक्षी कीड़े मकोड़े परागण अच्छी तरह करते है । अतएव ऐसे पौधे ज्यादा लजे जिनका परागण पशु पक्षियों व कीट पतंगों द्वारा होता है ताकि वृक्षों के लगाने में इनकी भी प्राकृतिक भूमिका हो । वनों के विकास में वाहक बने । 
संजय शर्मा 
सोशल एक्टिविस्ट 

भाटापारा में चिराग द्वारा सामुदायिक गतिशीलता कार्यक्रम आयोजित

राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन नई दिल्ली एवं  छत्तीसगढ़ राज्य एड्स नियंत्रण समिति रायपुर के सहयोग से  चिराग सोशल वेलफेयर सोसायटी अम्बिकापुर द...