*जन जुड़ाव* अनमोल फाउंडेशन द्वारा संचालित एक ऐसा मंच है जो जमीनी स्तर किए जा रहे छोटे छोटे स्वेच्छिक प्रयासों की सफल कहानियों, शासकीय योजनाओं व जनहित से जुडी कानूनी जानकारियों को संग्रह कर प्रसारित करने हेतु तैयार किया गया है
Tuesday, 15 November 2022
छ.ग. के विकास में स्वैच्छिक संस्थाओं का योगदान - संजय शर्मा
आज हम यहाँ इस अंक को छत्तीसगढ़ स्थापना दिवस पर समर्पित करने जा रहे है चूँकि “जन जुडाव” में हम स्वैच्छिक प्रयासों को ही स्थान देते है इस कारण इस अंक में भी हम छत्तीसगढ़ के विकास में स्वैच्छिक संस्थाओं के योगदान को लेकर अपने अनुभवो को रखने का एक छोटा सा प्रयास है |
यह मेरा सौभाग्य रहा है कि छत्तीसगढ़ राज्य के गठन के पूर्व से ही राज्य में ग्राम स्तर पर आदिवासी व गरीब समुदायों के परिवारों के बीच सामुदायिक सहभागिता से कार्य करते आ रहा हूँ | वर्ष 1994 से स्वैच्छिक क्षेत्र से जुड़ा तब से लेकर आज तक इसी क्षेत्र में अलग – अलग तरह से कार्य करते आ रहा हूँ | जब हमने प्रारम्भ किया तब यह राज्य अविभाजित मध्यप्रदेश का हिस्सा था | स्वैच्छिक संस्थाएं अविभाजित मध्यप्रदेश के समय भी कार्य कर रही थी | लेकिन संख्या बहुत ही कम थी | 1 नवम्बर 2000 को मध्यप्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ |
छत्तीसगढ़ स्थापना के बाद स्वच्छिक संस्थाओं की गतिविधियां बढ़नी शुरू हुई | क्योकि एक तो आदिवासी बाह्य राज्य के रूप में छत्तीसगढ़ सामने आया दुसरा नए राज्य के स्थापना में कई प्रकार की समस्याएं सामने आती है जिनसे निपटने में मानव संसाधन व आर्थिक संसाधन की आवश्यकता पड़ती है | ऐसे में स्वैच्छिक संस्थाओं को तो आगे आना ही था | स्वैच्छिक संस्थाओं का चरित्र भी ऐसा ही रहा है | जब जब जहाँ जहां बड़ी समस्याएं आती है स्वच्छिक प्रयास बड़ी तेजी से आगे आते है और एक दुसरे की मदद कर सहारा बनते है | ठीक ऐसा ही कुछ छत्तीसगढ़ में रहा | जल जंगल व् जमीन के मुद्दों के साथ – साथ आजीविका, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण आदि कई बड़े मुद्दे तो थे ही साथ ही छोटे –छोटे मुद्दे भी अनेको प्रकार के सामने थे |
पंचायतों की बड़ी भूमिका थी लेकिन प्रतिनिधियों में अनुभवों की कमी भी एक बड़ी समस्या थी | स्वैच्छिक संस्थाएं इन्ही सारे जनहित से जुड़े मुद्दों को लेकर कार्य कर रही थी| लेकिन जब छत्तीसगढ़ बना तो कई राष्ट्रीय स्तर की संस्थाओं ने छत्तीसगढ़ में कदम रखा व जमीनी स्तर पर कार्य करने वाली संस्थाओं के साथ मिलकर अलग-अलग मुद्दों पर कार्य करना शुरू किया | छत्तीसगढ़ गठन से पूर्व स्वैच्छिक संस्थाओं की संख्या बहुत ही कम थी लेकिन राज्य बन्ने के बाद स्वैच्छिक संस्थाओं की संख्या में काफी वृद्धि हुई | लगभग जिलों में स्वैच्छिक संस्थाओं की उपस्थिति देखा जा सकता है | कुछ बड़ी राष्ट्रीय स्तर की व राज्य स्तर की संस्थाओं ने स्वैच्छिक संस्थाओं के क्षमता विकास की दिशा में भी व्यापक स्तर पर कार्य किया, साथ ही छोटे छोटे संसाधनों से मदद कर संस्थाओं को खडा किया ही साथ मुद्दों को लेकर एक सकारात्मक वातावरण का निर्माण भी किया | इस अंक में हम उन्ही प्रयासों पर बात करेंगे |
छत्तीसगढ़ एक नया राज्य होने के साथ – साथ आदिवासी बाहुल्य राज्य भी है | जब राज्य की स्थापना हुई तब यहा 16 जिले थे जो 22 सालों के सफ़र में बढ़कर 33 हो गई है | वैसे तो अविभाजित मध्यप्रदेश में छत्तीसगढ़ की स्थिति बहुत अच्छी नही थी | उस समय अधिकाश जिले आवागमन की सुविधा से कोसों दूर थे | ग्रामों की स्थिति भी दयनीय ही थी | जबकि छत्तीसगढ़ हमेशा से खनिज व वन संसाधन से भरपूर मात्रा में रहा है | जिसका सभी शासित सरकारों ने लाभ उठाया फिर भी छत्तीसगढ़ के क्षेत्र को वो लाभ नही मिला जो मिलना चाहिए था |
जब छत्तीसगढ़ का गठन हुआ तो वही समस्याएं विरासत में मिली जल, जंगल, जमीन, स्वास्थ्य, आजीविका, रोजगार, यातायात आदि बहुत से मुद्दे विद्यमान रहे है | इन सभी समस्याओं को ध्यान में रखते हुए कुछ अन्तराष्ट्रीय स्वैच्छिक संस्थाएं जो पूर्व से कार्यरत थी जिनमे यूनिसेफ, युएनडीपी, एक्शन एड, आदि | छत्तीसगढ़ बनने के बाद ये संस्थाए राज्य में अपने कार्यालय स्थापित कर कार्यों को विस्तारित किया लेकिन इसके अलावा आई जी एस एस एस, सी आर एस, आक्सफैम इंडिया, केयर, कासा, प्रिया, समर्थन, वाणी आदि राष्ट्रीय स्तर की संस्थाओं ने छत्तीसगढ़ में संघन रूप से पंचायती राज संस्थाओं को सशक्त बनाने, महिलाओं के सशक्तिकरण, नागरिक समाज के सशक्तिकरण, आदिवासी समुदाय के सशक्तिकरण के साथ शिक्षा, कृषि, वन भूमि के अधिकार, खाद्य सुरक्षा, आर्थिक सशक्तिकरण, कुपोषण, पलायन व रोजगार की दिशा में कार्य को मजबूती देने का कार्य किया | इनमे से कुछ संस्थाओं ने छत्तीसगढ़ की जमीनी स्तर की स्वैच्छिक संस्थाओं के सशक्तिकरण के लिए भी कार्य किया|
छत्तीसगढ़ में स्वैच्छिक संस्थाओं की स्थिति अगर एक नजर में देखने का प्रयास करें तो यहाँ कुछ अन्तराष्ट्रीय स्तर की दानदाता संस्थाएं है तो कुछ राष्ट्रीय स्तर की संस्थाए जिन्हें मदर एन जी ओ भी कहा जाता है और कुछ स्थानीय स्तर की स्वैच्छिक संस्थाएं |
चूँकि स्वैच्छिक संस्थाओं का दायरा बहुत बड़ा है इसमें ग्रामीण क्षेत्रों कार्य करने वाले स्वैच्छिक संस्थाए आती है जो सोसाइटी अधिनियम के तहत पंजीकृत है या ट्रस्ट या कम्पनी एक्ट के तहत पंजीकृत है | वहीं शहरी क्षेत्रों में भी बड़ी संख्या में सेवा भावी संस्थाएं भी है जो क्लब के रूप में भोजन, भंडारा व नगर निगमों के क्षेत्र में स्वच्छता व पर्यावरण आदि मुद्दों पर जागरूकता आदि कार्य करती आ रही है | जमीनी स्तर की स्वैच्छिक संस्थाओं की अगर बात करें तो उनमे भी दो अलग –अलग प्रकार की संस्थाएं एक जो अपने आपको स्वैच्छिक संस्थाएं कहती है दुसरा जो अपने आपको जन संगठन कहते है | स्वैच्छिक संस्थाएं सरकार की योजनाओं को जमीनी स्तर पर पहुचाने के लिए कार्य करती है साथ ही रचनात्मक कार्य भी सीधे करती है | वही जन संगठन शोषित व वंचित समुदाय के लोगों के कानूनी अधिकारों को दिलाने के लिए संघर्ष करती है |
स्थानीय स्तर पर कार्यरत संस्थाए कुछ राज्य स्तर पर शासन के परियोजनाओं से जुड़कर कार्यरत है वाही कुछ केंद्र सरकार के साथ जुडकर उनकी परियोजनाओं के माध्यम से कार्यरत है | अगर हम देखें तो पंचायती राज अधिनियम, मनरेगा, सूचना का अधिकार कानून, शिक्षा का अधिकार कानून, खाद्य सुरक्षा कानून, वन अधिकार कानून के जमीनी स्तर पर सही क्रियान्वयन की दिशा में सैकड़ों संस्थाएं सक्रीय रूप से कार्यरत रही है और एक मुकाम तक पहुचाया भी है |
कई संस्थाएं सरकार की विभिन्न परियोजनाओं में जुडकर तकनिकी विशेषज्ञ के रूप में कार्य किया तो कई ने क्रियान्वयन एजेंसी के रूप में | कई संस्थाओं कल्याणकारी योजनाओं के लाभ के लिए तो कई भय, भूख व् भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए | कुछ जल जंगल जमीन के मुद्दों पर तो कई स्वास्थ्य, शिक्षा व कल्याण के लिए | स्वैच्छिक संस्थाओं की सबसे बड़ी भूमिका जो मुझे दिखाई देता है वह है जरूरतमंद परिवारों, शासन व योजनाओं के बीच प्रेरणादायी/ मार्गदर्शक के रूप में पुल का काम करता है |
संजय शर्मा
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