Thursday, 25 December 2025

कभी विकास का भागीदार बनते देखा है विस्तापित परिवारों को ...

आदमी किसी मेहनत करके घर, खेत बाड़ी खरीदता है उसमे मेहनत करके खेती योग्य बनाता है और अपने परिवार का आजीविका चलाता है । सालों साल उसकी देखरेख करता है । और अचानक एक दिन कोई उद्योगपति आया है माइंस खोलने, उद्योग खोलने के नाम पर सरकार से मिलकर जमीन अधिग्रहित कर उस किसान को मुआवजा देकर वहां से भागने को कहता है । 
अपने पीढ़ियों से बसे बसाए घर द्वार खेल खलिहान को अचानक छोड़ कहाँ जाए यह सोचना और कल्पना करना बहुत ही पीड़ादायक होता है ।

कभी उन उद्योगपतियों के घर इस तरह नहीं तोड़े गए न, कभी उन नेताओं और ब्यूरोक्रेट्स के घर इस तरह टूटते तो उन्हें दर्द और पीड़ा पता होता की कैसा महसूस होता है? कैसी बेदना होती है ? कैसी  पीड़ा होती है ?

विकास के नाम पर विनाश की कहानी लिखने व गढ़ने वाले यह कभी नहीं बताते की जिस विकास की बाते वे करते हैं उस विकास का लाभ तो हमेशा वे ही स्वंय उठाते है । कभी विस्तापित परिवार को विकास का भागीदार बनते देखा है । मैंने तो नहीं देखा आपने देखा है तो जरूर बताना । 

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कभी विकास का भागीदार बनते देखा है विस्तापित परिवारों को ...

आदमी किसी मेहनत करके घर, खेत बाड़ी खरीदता है उसमे मेहनत करके खेती योग्य बनाता है और अपने परिवार का आजीविका चलाता है । सालों साल उसकी देखरेख क...