हम बचपन से देखते आए है गर्मी बढ़ ही रही है कम नही हुआ कभी बल्कि साल दर साल बाद ही रहा है । कारण कई है जहां - जहां जंगल है वही - वही खनिज संपदा है । शासन सत्ता की नजर खनिज के दोहन पर है । कैसे करें ? दिन रात इस पर रणनीति बन रही है । विकास के नाम पर कांक्रीट का जाल सड़को के रूप में बिल्डिंगों के रूप में फैलता जा रहा है । पेड़ों की अंधाधुंध कटाई हुई है सड़क बनाने के नाम पर , रेल लाइन बनाने के नाम पर और सबसे ज्यादा खदान खोदने व उद्योग लगाने के नाम पर । इतना काटा गया कि जो गांव गर्मी में ठंडे रहते थे वो भी अब गरम हो गए । शहरों में तो बिल्डिंगे ऊंची ऊची इमारतें तो बनी ही बनी साथ ही नालियों का पक्की करण कर जलस्रोतों को भूजल में परिवर्तित होने से3 जमीन के अंदर जाने से रोक दिया गया । जो थोड़े बहुत पेड़ थे उन्हें काट डाला गया । इसके साथ साथ पैसे वालों के घरों में एयरकंडीशनर ने लिया अंदर तो ठंडा कर दिया लेकिन बाहर की गर्मी को बढ़ा दिया ।
जिन क्षेत्रों में खनिज है वहां से खनिज आज नही तो कल निकालेंगे जरूर । इसके लिए जंगल खत्म होगा वे गांव खत्म होंगे जोंस क्षेत्र में बसे होंगे वे जीव जंतु खत्म होंगे जो उस क्षेत्र में होंगे ।
जंगल काट कर जंगल जंगल लगाने का फैशन चल रहा है लेकिन जितना कट रहा है उसकी तुलना में लगाया कम जा रहा है । जो लग रहा है वो सब ऐसे पौधे है जो सिर्फ इमारती लकड़ी के काम आएंगे ये जलवायु के अनुकूल नही होते है । जीव जंतु के हिसाब से ये सुरक्षित नही होते । भूक्षरण को ये रोकते नही है । पानी भी ज्यादा मात्रा में चाहिए ।
उद्योग खूब लग रहे है और उद्योगों को चलाने के लिए पानी की जरूरत होती है और इसके चलते नदियों में बैराज बना के पानी रोक कर उद्योगों को दिया जा रहा है। रेत माफिया नदियों से रेत व मील्स निकाल ले रहे है । जिससे नदी सुख जा रही है । इसका असर जलवायु पर भारी मात्रा में पड़ रहा है ।
सरकार इस दिशा में दिखावे के लिए सिर्फ योजनाएं बनाएंगी उनका अमला कुछ करेगा नही । गर्मी कम नही होगी हर साल बढ़ेगी ही । मौसम कभी भी कुछ भी बदलाव लेता रहेगा ।