Thursday, 30 May 2024

हर हाल में साल दर साल गर्मी बढ़ेगी -संजय शर्मा

हम बचपन से देखते आए है गर्मी बढ़ ही रही है कम नही हुआ कभी बल्कि साल दर साल बाद ही रहा है । कारण कई है जहां - जहां जंगल है वही - वही खनिज संपदा है । शासन सत्ता की नजर खनिज के दोहन पर है । कैसे करें ? दिन रात इस पर रणनीति बन रही है । विकास के नाम पर कांक्रीट का जाल सड़को के रूप में बिल्डिंगों के रूप में फैलता जा रहा है । पेड़ों की अंधाधुंध कटाई हुई है सड़क बनाने के नाम पर , रेल लाइन बनाने के नाम पर और सबसे ज्यादा खदान खोदने व उद्योग लगाने के नाम पर । इतना काटा गया कि जो गांव गर्मी में ठंडे रहते थे वो भी अब गरम हो गए । शहरों में तो बिल्डिंगे ऊंची ऊची इमारतें तो बनी ही बनी साथ ही नालियों का पक्की करण कर जलस्रोतों को भूजल में परिवर्तित होने से3 जमीन के अंदर जाने से रोक दिया गया । जो थोड़े बहुत पेड़ थे उन्हें काट डाला गया । इसके साथ साथ पैसे वालों के घरों में एयरकंडीशनर ने लिया अंदर तो ठंडा कर दिया लेकिन बाहर की गर्मी को बढ़ा दिया । 
जिन क्षेत्रों में खनिज है वहां से खनिज आज नही तो कल निकालेंगे जरूर । इसके लिए जंगल खत्म होगा वे गांव खत्म होंगे जोंस क्षेत्र में बसे होंगे वे जीव जंतु खत्म होंगे जो उस क्षेत्र में होंगे । 
जंगल काट कर जंगल जंगल लगाने का फैशन चल रहा है लेकिन जितना कट रहा है उसकी तुलना में लगाया कम जा रहा है । जो लग रहा है वो सब ऐसे पौधे है जो सिर्फ इमारती लकड़ी के काम आएंगे ये जलवायु के अनुकूल नही होते है । जीव जंतु के हिसाब से ये सुरक्षित नही होते । भूक्षरण को ये रोकते नही है । पानी भी ज्यादा मात्रा में चाहिए । 
उद्योग खूब लग रहे है और उद्योगों को चलाने के लिए पानी की जरूरत होती है और इसके चलते नदियों में बैराज बना के पानी रोक कर उद्योगों को दिया जा रहा है। रेत माफिया नदियों से रेत व मील्स निकाल ले रहे है । जिससे नदी सुख जा रही है । इसका असर जलवायु पर भारी मात्रा में पड़ रहा है । 
सरकार इस दिशा में दिखावे के लिए सिर्फ योजनाएं बनाएंगी उनका अमला कुछ करेगा नही । गर्मी कम नही होगी हर साल बढ़ेगी ही । मौसम कभी भी कुछ भी बदलाव लेता रहेगा । 

Wednesday, 29 May 2024

जब सब मिलकर ही प्रकृति को नष्ट कर रहे है तो कैसे मिलेगा गर्मी से राहत

औद्योगिक क्रांति के नाम पर जो जंगलों व वनों तथा नदी का संहार हो रहा है उससे तो लग रहा है कि इस भीषण गर्मी से राहत मिलने नामुमकिन है । हां तभी कुछ सोचा जा सकता है जब देश की कम से कम आधी आबादी इस दिशा में काम करे । वनों को बचाने का, उद्योग जितने उससे ज्यादा न खुले इसकी व्यवस्था करने का, जंगलों को बचाने का , नदियों को बचाने का पानी को बचाने का, साथ ही उद्योगों से निकलने वाले कचरे गंदगी व प्रदूषण पर लगाम लगाने हैती सरकार पर दबाव बनाने का । 
सरकार से कुछ नही होगा बल्कि सरकार एक झटके में सारे किए कराए पर पानी फेर देगी। आज नही तो कल पूरा खनिज संपदा जमीन से निकाल लेंगे ये तो तय है । उसे निकालने के लिए गांव खाली कराएंगे और जंगल काटेंगे ये भी सत्य है । और सारा खनिज जंगलों के नीचे है ये भी तय है । उद्योग लगाएंगे तो उद्योगों को पानी चाहिए तो नदियों का पानी भी बेचेंगे । जहां नही होगा वह नदी जोड़ों अभियान के नाम से उस तरफ से नदी को ले जाएंगे जहां उद्योग लजे होंगे या भविष्य में लगने वाले होंगे । और वहां ले जाकर पानी को बेचेंगे । 
फैक्ट्री से जो प्रदुषण निकलेगा उसे ये कभी कंट्रोल नही करेंगे । 
लोगों को वृक्षारोपण करने व पानी बचाने के लिए अभियान चालाएँगे । खुद दोहन करेंगे उद्योगपतियों के साथ मिलकर । उनके पैसे से देश मे सरकारें चलेंगी । 
आम आदमी पौधा लगेगा सरकार काट देगी । ये निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है । 
नए जो पौधे सरकार लगा रही है ये पर्यावरण व जैव विविधता के अनुकूल नही है । ये जानवरों या पशु पक्षियों के लिए भी अनुकूल नही । ये सिर्फ इमारती लकड़ी वाले पौधे ही लगा रहे है या प्रमोट कर रहे है या सिर्फ झाड़ियां जिनका कोई काम नही । इमारती लकड़ी को को ये बाद में काट लेगे अपनी जरूरत के हिसाब से । 
अब जनता क्या करेगी ये सोचना है पौधे बचाने के लिए आंदोलन करेगी तो जेल में डाल देंगे। पौधे लगाएंगे तो कितना और कहां जमीनों पर भी तो सरकार के सहयोग से माफियाओं का ही कब्जा है ।खेती को समाप्त कर औद्योगिक क्रांति लाना चाह रहे है । तो औद्योगिक क्रांति आएगी तो पर्यावरण का बचना नामुमकिन है । 
ऊपर में बैठे रणनीति कर सैफ दोहन में लगे हैं उनका कोई इरादा नही है देश व देश की जनता के जीवन की सुरक्षा से । 

भाटापारा में चिराग द्वारा सामुदायिक गतिशीलता कार्यक्रम आयोजित

राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन नई दिल्ली एवं  छत्तीसगढ़ राज्य एड्स नियंत्रण समिति रायपुर के सहयोग से  चिराग सोशल वेलफेयर सोसायटी अम्बिकापुर द...