केंद्र सरकार ने "महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारन्टी कानून "(मनरेगा ) का व्यापक मूल्यांकन कराने का फैसला किया है | २००६ से लागू इस योजना के सभी मोर्चो पर कमजोर प्रदर्शन को लेकर केंद्र की यू पी ए सरकार खाशा चिंतित है |
मनरेगा योजना का होगा राष्ट्रव्यापी मूल्यांकन
पहली बार ग्रामीण विकास मंत्रालय ने ग्रामीण रोजगार योजना के राष्ट्रव्यापी समवर्ती मूल्याकन का खाका तैयार किया है , जो वर्षो से भ्रष्टाचार और अनियमितता में फासी हुई है | केंद्र सरकार इस योजना पर बड़े पैमाने पर खर्च कर रही है , लेकिन तुलनात्मक रूप से परिणाम बेहद कमजोर रहे है |आंकड़े बताते है की न केवल परिवार के स्तर पर रोजगार उपलब्धता , बल्कि महिलाओं के प्रतिशत और अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के भागीदारी प्रतिशत में कमी आई है |
सी ए जी रिपोर्ट में भी खिचाई
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सी ए जी ) ने भी अपनी रिपोर्ट में ग्रामीण विकास मंत्रालय व राज्यों की खिचाई की थी कि वे योजना से जुडी उन कमियों को पकड़ने में नाकाम है , जिनके चलते गबन हो रहा है |गौरतलब है की प्रस्तावित अध्ययन में २०१०-११,२०११-१२ व २०१२-१३ की समयावधि शामिल होगी और अध्ययन के लिए नमूनों का चयन २८ राज्यों के १०१ जिलो से किया जाएगा | अधिकारी मुताबिक़ , इस अध्ययन में कुल ४०,९०५ घर शामिल होंगे | इस अध्ययन के उद्देश्यों में सूखे के मौसम में रोजगार की उपलब्धता ,मजदूरी दर और मजदूरी का भुगतान , गाव से लोगो का प्रवाशां और कार्य स्थल पर सुविधाओं के लिहाज से योजना के बारे में लोगो के दृष्टिकोण का पता लगाना शामिल है |
व्यापक अध्ययन की कमी
ग्रामीण क्षेत्र में दूरगामी असर वाले प्रभावी हस्तक्षेप के लिहाज से कुछ अध्ययनों में इसे महत्वपूर्ण बताया गया है , इसके बावजूद ऐसे व्यापक मूल्याकन अध्ययन की कमी मानी जाती रही है , जिसमे इस कानून के महत्वपूर्ण पक्षों व लागू करने की स्थितियों को मुल्याकाना का आधार बनाया जाए | मनरेगा के तहत निर्मित विभिन्न सम्पतियो व इसकी उपयोगिता व गुणवत्ता , जलसंरक्षण कार्यो से कृषि उत्पादकता बढाने की जानकारी और ग्रामीण क्षेत्रो में सिचाई सम्बंधित सम्पतियो के लाभों के बारे में लोगो की राय का अध्ययन किया जाएगा |
सरकारी रिपोर्ट के अनुसार , मौजूदा वित्तीय वर्ष ( सितम्बर २०१३ तक ) में मध्यप्रदेश ,छत्तीसगढ़ ,उत्तराखंड ,गोवा ,असं ,अरुणाचल प्रदेश , मेघालय , हरियाणा ,ओडीसा ,उत्तरप्रदेश ,पश्चिम बंगाल , मिजोरम व त्रिपुरा में प्रति परिवार औसत व्यक्ति दिवसो की संख्या राष्ट्रीय औसत (२८) से काफी कम रही है | इसके अलावा जिलास्तर पर भी २०१३-१४ में योजना का बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं पाया गया है |
केवल चार माह का वक्त
अध्ययन करता संस्था के चयन के बाद अगले चार माह में ही इस अध्ययन को पूरा करने का लक्ष्य है | इसमे व्यक्तिगत लाभार्थी योजना , लाभार्थी परिवार की सामाजिक - आर्थिक स्थिति व रोजगार क्षमता का भी अध्ययन शामिल है | उल्लेखनीय है की बहुत से राज्यों में श्रम की मांग वास्तविक रूप से ५० फीसदी से कम पाई गई है |
यही नहीं की मनरेगा के तहत बेरोजगारी भत्ता देने का नियम है | इसके तहत रोजगार आवेदन आने के १५ दिन के भीतर यदि रोजगार नहीं मिलता है तो आवेदक को अनिवार्य तौर पर बेरोजगारी भत्ता उपलब्ध कराने का प्रावधान है | इसके तहत पहले ३० दिन तक कुल मजदूरी का एक- चौथाई और उसके बाद आधी मजदूरी के बराबर का भुगतान बेरोजगारी भत्ते के रूप में भुगतान किया जाना है | हालाकि अब तक केवल कुछ राज्यों ने ही इससे सम्बंधित नियमो को अधिसूचित किया है | इसमे आँध्रप्रदेश ,बिहार ,छत्तीसगढ़ , गोवा, गुजरात ,कर्नाटका, मध्यप्रदेश ,महाराष्ट्रा ,पश्चिम बंगाल और अंदमान -निकोबार शामिल है |
मनरेगा योजना का होगा राष्ट्रव्यापी मूल्यांकन
पहली बार ग्रामीण विकास मंत्रालय ने ग्रामीण रोजगार योजना के राष्ट्रव्यापी समवर्ती मूल्याकन का खाका तैयार किया है , जो वर्षो से भ्रष्टाचार और अनियमितता में फासी हुई है | केंद्र सरकार इस योजना पर बड़े पैमाने पर खर्च कर रही है , लेकिन तुलनात्मक रूप से परिणाम बेहद कमजोर रहे है |आंकड़े बताते है की न केवल परिवार के स्तर पर रोजगार उपलब्धता , बल्कि महिलाओं के प्रतिशत और अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के भागीदारी प्रतिशत में कमी आई है |
सी ए जी रिपोर्ट में भी खिचाई
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सी ए जी ) ने भी अपनी रिपोर्ट में ग्रामीण विकास मंत्रालय व राज्यों की खिचाई की थी कि वे योजना से जुडी उन कमियों को पकड़ने में नाकाम है , जिनके चलते गबन हो रहा है |गौरतलब है की प्रस्तावित अध्ययन में २०१०-११,२०११-१२ व २०१२-१३ की समयावधि शामिल होगी और अध्ययन के लिए नमूनों का चयन २८ राज्यों के १०१ जिलो से किया जाएगा | अधिकारी मुताबिक़ , इस अध्ययन में कुल ४०,९०५ घर शामिल होंगे | इस अध्ययन के उद्देश्यों में सूखे के मौसम में रोजगार की उपलब्धता ,मजदूरी दर और मजदूरी का भुगतान , गाव से लोगो का प्रवाशां और कार्य स्थल पर सुविधाओं के लिहाज से योजना के बारे में लोगो के दृष्टिकोण का पता लगाना शामिल है |
व्यापक अध्ययन की कमी
ग्रामीण क्षेत्र में दूरगामी असर वाले प्रभावी हस्तक्षेप के लिहाज से कुछ अध्ययनों में इसे महत्वपूर्ण बताया गया है , इसके बावजूद ऐसे व्यापक मूल्याकन अध्ययन की कमी मानी जाती रही है , जिसमे इस कानून के महत्वपूर्ण पक्षों व लागू करने की स्थितियों को मुल्याकाना का आधार बनाया जाए | मनरेगा के तहत निर्मित विभिन्न सम्पतियो व इसकी उपयोगिता व गुणवत्ता , जलसंरक्षण कार्यो से कृषि उत्पादकता बढाने की जानकारी और ग्रामीण क्षेत्रो में सिचाई सम्बंधित सम्पतियो के लाभों के बारे में लोगो की राय का अध्ययन किया जाएगा |
सरकारी रिपोर्ट के अनुसार , मौजूदा वित्तीय वर्ष ( सितम्बर २०१३ तक ) में मध्यप्रदेश ,छत्तीसगढ़ ,उत्तराखंड ,गोवा ,असं ,अरुणाचल प्रदेश , मेघालय , हरियाणा ,ओडीसा ,उत्तरप्रदेश ,पश्चिम बंगाल , मिजोरम व त्रिपुरा में प्रति परिवार औसत व्यक्ति दिवसो की संख्या राष्ट्रीय औसत (२८) से काफी कम रही है | इसके अलावा जिलास्तर पर भी २०१३-१४ में योजना का बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं पाया गया है |
केवल चार माह का वक्त
अध्ययन करता संस्था के चयन के बाद अगले चार माह में ही इस अध्ययन को पूरा करने का लक्ष्य है | इसमे व्यक्तिगत लाभार्थी योजना , लाभार्थी परिवार की सामाजिक - आर्थिक स्थिति व रोजगार क्षमता का भी अध्ययन शामिल है | उल्लेखनीय है की बहुत से राज्यों में श्रम की मांग वास्तविक रूप से ५० फीसदी से कम पाई गई है |
यही नहीं की मनरेगा के तहत बेरोजगारी भत्ता देने का नियम है | इसके तहत रोजगार आवेदन आने के १५ दिन के भीतर यदि रोजगार नहीं मिलता है तो आवेदक को अनिवार्य तौर पर बेरोजगारी भत्ता उपलब्ध कराने का प्रावधान है | इसके तहत पहले ३० दिन तक कुल मजदूरी का एक- चौथाई और उसके बाद आधी मजदूरी के बराबर का भुगतान बेरोजगारी भत्ते के रूप में भुगतान किया जाना है | हालाकि अब तक केवल कुछ राज्यों ने ही इससे सम्बंधित नियमो को अधिसूचित किया है | इसमे आँध्रप्रदेश ,बिहार ,छत्तीसगढ़ , गोवा, गुजरात ,कर्नाटका, मध्यप्रदेश ,महाराष्ट्रा ,पश्चिम बंगाल और अंदमान -निकोबार शामिल है |
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