Monday, 20 May 2019

दहेज निवारण कानून


भूमिका
दहेज़ भारतीय समाज में कोढ़ में खाज का काम करा रही है | दहेज़ के कारण बेटी का जन्म लेना माँ – बाप के लिए अभिशाप बन जाता है | जहां बेटे के जन्म पर खुशियाँ मनाई जाती है वही बेटी के जन्म पर मातम | माँ बाप की लाचारी को देख कर हजारों लडकियां आत्महत्या करा लेती है | दहेज़ में अच्छी खासी रकम नहीं मिलने पर वर पक्ष बधुओं को कष्ट देते है | दहेज़ के कारण वधुओं के द्वारा आत्म ह्त्या की खबरे अक्सर समाचार पत्र एवं टी वी न्यूज चैनल पर देखने को मिलती है |
“ यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते | रमन्ते तत्र देवता “
इस उक्ति में विस्वास करने वाले समाज में नारियों को जलाना केवल अपराध ही नही बल्कि महापाप है |
दहेज़ प्रथा का उन्मूलन केवल कानून से संभव नही है, इसके लिए सामाजिक चेतना की जरुरत है | इस कुप्रथा को समाप्त करने के लिए 1981 में दहेज़ प्रतिषेध अधिनियम पारित किया गया , जिसमे दहेज़ लेना दहेज़ देना या मांगने के लिए अभिप्रेरित करना आदि को अपराध के घेरे में लाकर अपराधियों को सजा दिलाने का प्रावधान किया गया है , लेकिन इस अधिनियम का कोई कारगर असर नही हुआ | समय समय पर इसमे संसोधन करके इस प्रथा पर कठोर नियंत्रण लाने की चेष्टा की गई | क्रिमिनल ला ( द्वितीय संसोधन) अधिनियम 1983 जो 25 सितमबर 1983 को प्रभावी हुआ के द्वारा पति पत्नी और उसके सबंधियों को सजा देने की व्यवस्था की गई, स्त्री के साथ क्रूरता के व्यवहार का दोषी पाया गया | वर्ष 1984 में दहेज़ प्रतिषेध ( वर वधु को दी गए उपहार की सूची का रखरखाव ) नियम 1984 पारित करके उपहार के नाम पर दहेज़ लेने की प्रवृति पर रोक लगाने का प्रयास किया गया | पुनः वर्ष 1986 में दहेज़ प्रतिषेध ( संसोधन ) अधिनियम 1986 द्वारा दहेज़ मृत्यु को परिभाषित करके उसके लिए कड़ी सजा की व्यवस्था की गई | दहेज़ मृत्यु कारित न करने का साक्ष्य अभिसार भी अभियुक्त पर रखे जाने का प्रावधान किया गया |
दहेज़ क्या है ?
दहेज़ को परिभाषित करते हुए दहेज़ प्रतिषेध अधिनियम में कहा गया है कि वः विवाह के लिए विवाह के पहले या बाद में या विदाई के समय एक पक्ष द्वारा या उसके किसी सम्बन्धी द्वारा दुसरे पक्ष को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कुछ मूल्यवान प्रतिभूति या सम्पत्ति दी जाती है, वह दहेज़ कहलाता है | लेकिन यह मुस्लिम कानून ( शरीयत) के अंतर्गत ही मेहर दिया जाता है वह इस परिभाषा में  नहीं आता है | एसा कोई उपहार जो की विवाह करने के एवज नही दिया जाता वः दहेज़ के अंतर्गत नही आता है | मूल्यवान प्रतिभूति का अर्थ है इसे दस्तावेज से है जिसके द्वारा कोई कानूनी अधिकार सृजित, विस्तृत, अंतरित, निर्बन्धित किया जाए या छोड़ा जाए या जिसके द्वारा कोई व्यक्ति यह भी स्वीकार करता हो कि वः कानूनी दायित्व के अंतर्गत है या नही |
दहेज़ अपराध के लिए दंड की व्यवस्था
दहेज़ लेना या देना या दहेज़ की मांग करना दंडनीय अपराध है दहेज़ प्रतिषेध अधिनियम में इसे गैर जमानतीय एवं संज्ञेय अपराध माना गया है | दहेज़ लेने या देने सम्बन्धी कोई भी करार अवैध माना जाता है | उन व्यक्तियों के लिए भी सजा का प्रावधान किया गया है जो दहेज़ जैसे अपराध को अभिप्रेरित करते है | 2 अक्टूबर 1984 से लागू नियमावली के अनुसार विवाह के अवसर पर वर – वधु को दी जाने वाले उपहारों की सूची, देने वालों के नाम एवं वर – वधु से उसका सम्बन्धी एवं सूचि वर- वधु के हस्ताक्षर व अंगूठे का निशाँ के साथ रखने की कानूनी अनिवार्यता बताई गई है |
इस अधिनियम की धारा 8 में दहेज़ के अपराध को संज्ञेय बताते हुए पुलिस को इसकी जांच करने का पूरा अधिकार है , किन्तु पुलिस किसी मजिस्ट्रेट के आदेश या वारंट के बिना इस अपराध में किसी व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं कर सकती है \\ दहेज़ कानून की धारा 3 के अनुसार दहेज़ लेने या देने टा लेने –देने को अभिप्रेत करने वाले व्यक्ति के लिए कारावास एवं 15,000/- या दहेज़ की धनराशी जो भी अधिक हो, द्वारा दण्डित किया जाता है | दहेज़ सम्बन्धी अपराध के लिए कम से कम 5 वर्ष के कारावास का प्रावधान है |
यदि कोई व्यक्ति सीधे या परोक्ष रूप से वर या वधु के माता पिता या संरक्षक या अन्य सम्बन्धियों से दहेज़ की मांग करता है तो उसे 2 वर्ष तक के कारावास एवं 10,000/- रुपए जुर्माने के साथ दण्डित किया जा सकता है इसे अपराध में कम से कम 6 माह के कारावास की सजा का प्रावधान है \\ दहेज़ प्रतिषेध ( संशोधन) अधिनियम 1986 द्वारा मूल अधिनियम में 4-क जोडकर किसी समाचार पत्र, पत्रिका या किसी अन्य माध्यम से किसी भी व्यक्ति द्वारा इसे विज्ञापन देने पर प्रतिबन्ध लगाया है | जिसके द्वारा वः अपने पुत्र या पुत्री या किसी अन्य सम्बन्धी के विवाह के बदले में प्रतिबंध है | इसका पालन नही करने पर हक कायम करने का प्रस्ताव करता है | इस तरह के विज्ञापन छपवाने तथा प्रकाशित करने या बाँटने पर इस अधिनियम की धारा 6 में व्यवस्था है की स्त्री ( वधु) के अलावा कोई दुसरा व्यक्ति दहेज़ लेता है तो वः विवाह की तिथि से 3 माह के अंदर या यदि विवाह के समय वधु नाबालिक हो तो उसके 18 वर्ष की आयु प्राप्त होने के एक वर्ष के अंदर दहेज़ की राशि उसको ट्रांसफर कर देगा तथा जब तक दहेज़ उसके पास है, वः वधु के लाभ के लिए तरसती के रुप में रखेगा |
यदि सम्पति की अधिकारिणी स्त्री की मृत्यु ट्रांसफर से पहले हो जाती है तो सम्पत्ति पर उसके कानूनी उतराधिकारियों का हक़ होगा | यदि इसी स्त्री की मृत्यु विवाह के सात वर्ष के भीतर असामान्य परिस्थिति में हो जाए और उसके कोई बच्चे न हो तो उस संपत्ति का मालिक उसके माता पिता होंगे |
इन प्रावधानों का उलंघन करने वाले को दो वर्ष तक का कारावास एवं 10,000/- रुपए जुर्माने की सजा हो सकती है | यह सजा कम से कम 6 माह एव जुर्माना 50,000/- रुपए है |
निर्धारित समय सीमा में वधु या उसके उत्तराधिकारी या उसके माता पिता की सम्पत्ति ट्रांसफर नहीं करने वाले व्यक्ति को केवल सजा ही नही होती बल्कि उनसे सम्पत्ति के समतुल्य धनराशी भी वसूल की जाती है |
न्यायालय द्वारा संज्ञान
क-   इस अधिनियम के तहत आने वाले अपराधों की सुनवाई का अधिकार मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट / प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट के नीचे के किसी भी अधिकारी के पास नहीं होता है
ख-   इन अपराधों में न्यायालय द्वरा प्रसंज्ञान स्वंय की जानकारी, पुलिस रिपोर्ट, अपराध से पीड़ित व्यक्ति या उसके माता- पिता या अन्य संबंधितों के परिवार या किसी मान्यता प्राप्त सामाजिक संगठन / संस्था के परिवाद पर लिया जा सकता है |
ग-    सुनवाई करने वाले मेत्रोपोलिय्ना मजिस्ट्रेट / प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट को इस अधिनियम के अंतर्गत आने वाले अपराधों में उस सीमा तक दंड देने के लिए शक्ति प्रदान की गई है जो विभिन्न अपराधों के लिए इस अधिनियम में निर्धारित है, चाहे ये शक्तियां दंड प्रक्रिया संहिता में प्रदत्त शक्तियों से अधिक क्यों न हो ? इस अधिनियम के अंतर्गत आने वाले अपराधों के विषय में संज्ञान लेने के लिए क्कोई समय सीमा टी नही है | महत्वपूर्ण प्रावधान यह है कि दहेज़ सम्बन्धी अपराध से पीड़ित व्यक्ति को उसके द्वारा दी गए किसी ब्यान के आधार पर अभियोजित नहीं किया जा सकता है |
साक्ष्य का भार
प्राय: आपराधिक मामलों में किसी अभियुक्त पर दोष सोद्ध करने का भार अभियोजन पक्ष पर होता है लेकिन इस अधिनियम की धारा -3 एवं धरा -4 के तहत दहेज़ सम्बन्धी मामलों में अपराध नहीं किए जाने का साबुत पेशा करने का भार अभियुक्त होता है |
वद्गु को प्राप्त उपहार
वधु को विवाह से पहले, विवाह के समय या विवाह के बाद जो उपहार माता – पिता के पक्ष से या ससुराल पक्ष से मिलता है उसे स्त्रीधन कहा जता है | वधु स्त्री धन की पुरी तरह से मालकिन है या स्वामिनी है |
दहेज़ के लिए वधु के साथ दुर्व्यवहार के लिए दंड
दहेज़ प्रतिषेध अधिनियम में वधु के साथ क्रूरता या उत्पीडन के व्यवाहार के लिए कठोर दंड की व्यवस्था है
क्रूरता के लिए पति के साथ उसके सम्बन्धियों को भी दण्डित करने का प्रवाह्दान है, जो भारतीय दंड संहिता की धरा – 498 - क में जोड़ी गई है | धरा 498 – क यदि किसी स्त्री के पास उस / उन्हें पति या पति के रिश्तेदार उसके साथ क्रूरता का व्यवहार करता है तो तीन साल तक कारावास एवं जुर्माने से दण्डित किया जाएगा |
क्रूरता की परिभाषा इस प्रकार है
क-   जानबूझकर कोई एसा व्यवहार करना जिससे वः स्त्री का आत्महत्या के लिए प्रेरित करा हो या उस स्त्री के जीवन अंग या स्वास्थ्य को गम्भीर क्षति या ख़तरा पैदा हो |
ख-   किसी स्त्री को इस दृष्टि से तंग करना कि उसको या उसके किसी रिश्तेदार को कोई सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति देने के लिए बाध्य किया जाए या किसी स्त्री को इस कारण तंग करना कि उसका कोई रिश्तेदार इसी मांग पुरी न कर पाया हो|
भारतीय दंड संहिता में संशोधन करके एक नई धारा 304-ख जोड़ा गया जिसमे “ दहेज़ मृत्यु” को परिभाषित किया गया है |
धरा 304- ख दहेज़ मृत्यु
1-      यदि किसी स्त्री की मृत्यु किसी डाह या शारीरिक क्षति के कारण होती है या उसके विवाह के सात वर्ष के भीतर असामान्य परिस्थितियाँ होती है और यह प्रदर्शित होता है की उसकी मृत्यु के कुछ समय पहले उसके पति या उसके पति के रिश्तेदार ने दहेज़ की मांग के लिए उसके साथ क्रूरता का व्यवहार किया है तो ऐसी मृत्यु को दहेज़ कारित मृत्यु कहा जाता है |
2-      दहेज़ मृत्यु कारित करने वाले व्यक्ति को सात साल से आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती है \\
भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1972 धरा 133 – क एवं ख जोड़कर एक शक्ति दी गई है कि विवाह के 7 वर्ष के भीतर किसी स्त्री द्वारा आत्महत्या करने या दहेज़ मृत्यु के मामले में अभियुक्त के विरुद्ध अपराध करने की अवधारणा कर सके जब तक की अन्यथा सिद्ध न हो |
धरा 113- क
यदि कोई स्त्री विवाह के 7 वर्ष के भीतर आत्महत्या करती है तो न्यायालय मामले की सभी अन्य परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए यह अवधारणा करता है कि ऐसी आत्महत्या उसके पति या पति के रिश्तेदार द्वारा दुस्प्रेरित की गई है |
धारा  113 – ख
जब किसी व्यक्ति ने अपनी स्त्री की दहेज़ मृत्यु कारित की है और दर्शुइत किया जाता है कि मृत्यु के कुछ पहले ऐसे व्यक्ति दहेज़ की किसी मांग के लिए या उसके सम्बन्ध में उस स्त्री के साथ क्रूरता की थी तो न्यायालय के द्वारा यह अवधारणा की जाति है कि उस व्यक्ति ने दहेज़ मृत्यु कारित की है |
इस तरह कानून में संशोधन करके दहेज़ अपराध के लिए कठोर दंड की व्यवस्था की गई है | अत: दहेज़ प्रथा उन्मूलन के लिए बनाए गए कानून का उपयोग करने की आवश्यकता है |
साभार: छत्तीसगढ़ राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण “ सरल कानूनी शिक्षा “


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