गांवों में जब थे तब चारो तरफ घना जंगल हुआ करता था दो तरफ पहाड़ हुआ करता था अब क्या स्थिति है पता नही लेकिन पहले से पेड़ों की संख्या में भारी कमी आई है ।
जब अम्बिकापुर शहर में आए थे उस समय वहां का वातारवरण एकदम ठंडा हुआ करता था । गर्मी के दिनों में भी सिर्फ पंखे की जरूरत होती थी । लेकिन धीरे- धीरे मौसम परिवर्तन होने लगा । तब आसपास के लोग चर्चा करने लगे कि देखा पेड़ों की कटाई से ये गर्मी बढ़ रही है । ये चर्चा आज से 40 साल पूर्व होता था । ये चर्चा वे लोग करते थे जो पर्यावरणविद नही थे । लेकिन उनके अनुभव बहुत थे वे जानते थे मौसम का परिवर्तन कैसे होता है? क्यों होता है ?
धीरे- धीरे खदानों की संख्या में बढ़ोतरी होती गई पेड़ कटते गए जंगल समाप्त होते गए । जिन इलाकों में खदानों खुली वहां का जंगल तो गया ही गया साथ ही कोयले की राख ने पूरे क्षेत्र को अपनी आगोस में ले लिया शाम होते ही कोयले की धुंवे बादल बन ढंक लेते, उस क्षेत्र के निवासी उसी प्रदूषित हवा में सांस लेने को मजबूर थे जिसके कारण उन्हें बहुत सी भयंकर बीमारियों का सामना भी करना पड़ता है ।
जिस तरह से विकास का नाम लेकर कांक्रीट का जाल, पक्की सड़कों का जाल, माइंस का जाल, उद्योगों का जाल विछाया जा रहा है और इन्हें बिछाने के लिए जंगलों को नष्ट किया जा रहा है । पेड़ों की बलि चढ़ाई जा रही है उससे तो साफ - साथ दिख रहा है कि वो दिन दूर नही जब आने वाले कुछ ही सालों में वन व जंगल एक सपना होगा । बच्चे सिर्फ किताबों में पढ़ेंगे व फ़ोटो देखेंगे कहानियां सुनेंगे । घरों में लगे गमलों के पौधों को ही वे जंगल समझेंगे ।
उद्योगों को चलाने के लिए कोयला चाहिए वो कोयला जमीन के अंदर ही मिलेगा । उसमे भी ज्यादातर जंगलों की जमीन में ही मिलेगा । आज नही तो कल जमीन के भीतर का सारा कोयला शासन निकालेगी ही और कोयला निकालने के लिए जंगल काटेंगे ही । * तो क्या जंगल अब नही बचेंगे ?
जंगल ही क्या नदियां, तालाब, जीव-जंतु, कुछ भी नही बचेंगे ?
शासन पौधे तो लगाती है लेकिन कहां ? यह भी सोचना होगा और जो पौधे लगाती है वो मनुष्यों व जीव जंतुओं के लिए कितना उपयोगी है ? उसमे से कितना जीवित है ? कितना नही ? कितने कागजों में लगे हैं ? कितना हकीकत में ? यह भी सोचना होगा ।
#saveforest,savelife