इसके पीछे की कहानी यह है कि सरगुजा जिले में अडानी समूह और राजस्थान राज्य विद्युत् उत्पादन निगम लिमिटेड (आरवीयुएनएल) को हसदेव अभ्यारण अंतर्गत परसा कोल ब्लाक परसा इष्ट में कोयला निकालने की अनुमति केंद्र व राज्य सरकार द्वारा दी गई है साथ केते बासन कोल ब्लाक का विस्तार करने हेतु भी अनुमति प्रदान की गई है| इस अनुमति से अभ्यारण क्षेत्र से सरकारी आंकड़ों के अनुसार 95 हजार पेड़ों की कटाई होनी बताई जा रही है | जबकि स्थानीय लोगों का अनुमान है की 4.50 लाख से ज्यादा पेड़ों की कटाई की जाएगी |
स्थानीय समुदाय पिछले 10 वर्षों से इस आदेश का विरोध कर रहे है तथा क्षेत्र के जंगल को बचाने का प्रयास कर रहे है |
पुरे देश में सर्वाधिक कोयला उत्पादन करने वाला राज्य छत्तीसगढ़ है यहाँ 5990.78 करोड़ टन कोयला का भण्डार है | यह देश में उपलब्ध कुल कोयला भण्डार का करीब 18.34 फीसदी है |छत्तीसगढ़ में कुल 12 कोयला प्रक्षेत्र के 184 कोयला खदानों में से सबसे अधिक 90 कोल ब्लाक मांड- रायगढ़ में और 23 कोल ब्लाक हसदेव अरण्य के जंगलों में है| 1,70,000 हेक्टेयर में फैले हसदेव अरण्य के जंगल जैव- विविधता की दृष्टि से भी सबसे संवेदनशील माना जाता है |
यहाँ जंगली जानवरों का आवास तो है हाथियों का भी नियमित आवागमन इस क्षेत्र में रहता है | वनोषधियों से सम्पन्न यह अभ्यारण अपनी व प्राकृतिक विविधता के लिए भी जाना जाता है | यह क्षेत्र " नो-गो" एरिया में भी आता है |बावजूद इसके सभी नियमों को ताख पर रखकर केंद्र व राज्य शासन ने कोयला निकालने की अनुमति दी |
सरगुजा जिला पहले से ही कई खदानों के खुलने से अपनी प्राकृतिक सुन्दरता, पर्यावरणीय गुणों व अपनी जैव -विविधता को खोता चला जा रहा है | अब अगर खादनाओं को खुलने से न रोका गया और जंगलों को न बचाया गया तो वो दिन दूर नही जब यहाँ गर्मी बिकराल रूप में पैर पसार चुकी होगी और लोग अपनी जिन्दगी से हाथ धो बैठे होंगे | सरकार की नजर तो एक के बाद एक क्षेत्र से प्रकृति के दोहन की हमेशा रहेगी अभी हसदेव क्षेत्र है दुसरे तरफ सूरजपुर जिले में कोल ब्लाक खुलने जा रहा है | अगर अभी नहीं रोका गया तो धीरे -धीरे पूरा जंगल साफ़ हो जाएगा |
सरगुजा जिला जब अविभाजित हुआ करता था जिसमे कोरिया भी शामिल रहा अब कई जिलों में विभक्त हो गया | जिसे अब सरगुजा संभाग के रूप में जाना जाता है | यह पूरा क्षेत्र कोयला के लिए जाना जाता है कोरिया व सूरजपुर में कोयले की कई खदाने है जो वर्षों से संचालित है |खादान चाहे कोई भी हो खदानों के खुलने से उस क्षेत्र का तो सत्यानाश हो जाता है | हमने अपने जीवन में मैनपाट की हरियाली, जैव विविधता को भी देखा व् खदान खुलने के बाद सब नष्ट होते भी देखा | सरगुजा जिले में खुले खदानों के क्षेत्र से विस्थापन को भी देखा और भारी मात्रा में प्रदुषण को भी देखा प्रदुषण से होने वाली बीमारियों को भी |
हम जब हाई स्कुल में रहते थे उस समय अम्बिकापुर का तापमान इतना होता था की गर्मी के दिनों में भी एक पंखा का हवा पर्याप्त था गावों में तो इस पंखे की भी जरूरत नही थी लेकिन चारों तरफ खदानों के खुलने से और पेड़ों की अंधाधुंध कटाई तथा जंगलों के विनाश ने मौसम में एसा परिवर्तन लाया की अब बिना कूलर व एसी के नही रह सकते | मौसम में भी परिवर्तन हुआ पिछले कई वर्षों से अनियमित वर्षा हो रही है | अब कोई नही बता सकता की ठण्ड कब, पड़ेगी, गर्मी का मौसम कब शुरू होगा, पहले गाँव के लोग आसानी से बता देते थे |
जीव जन्तुओं की बात करें तो खदानों के खुलने व पेड़ों की कटाई से जो वन क्षेत्र धीरे -धीरे नष्ट होते जा रहे है जिससे अब जंगलों में रहने वाले जीव- जन्तु , पशु पक्षी समाप्त होते जा रहे है | पिछले कई वर्षों से तो हाथियों ने गाँवों व शहरों की ओर अपना रुख कर लिया है | इसके पीछे उनके भीतर असुरक्षा है आए दिन खदानों में विस्फोटो व मनुष्यों व गाड़ियों के आवागमन व् शोर गुल के कारण व अपने आपको सुरक्षित करने के लिए इधर उधर भाग रहे है जिससे व गाँवों व् शहरों में आ जाते है | जंगलों के अनादर उनके खाने पीने की चीजों में भी भारी कमी हुई है | पीने के पानी के जो स्रोत थे वे जंगलों के कटने से समाप्त होते जा रहे है | अब पानी के स्रोत के रूप में बड़ी नदिया बची है लेकिन अब नदियों में भी उद्योगों का दखल होने से जीव- जन्तुओं के लिए सुरक्षित नही रहा | ऐसे में जीव - जन्तु अपने लिए सुरक्षित स्थान की तलाश में भटक रहे है |
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