*जन जुड़ाव* अनमोल फाउंडेशन द्वारा संचालित एक ऐसा मंच है जो जमीनी स्तर किए जा रहे छोटे छोटे स्वेच्छिक प्रयासों की सफल कहानियों, शासकीय योजनाओं व जनहित से जुडी कानूनी जानकारियों को संग्रह कर प्रसारित करने हेतु तैयार किया गया है
Friday, 28 May 2021
जमीनी स्तर पर कार्यरत स्वैच्छिक संस्थाओं की चुनौतियां
स्वैच्छिक संस्थाओं की बात जब होती है तो कई नाम सामने आते NGO,स्वैच्छिक संस्थाएं (VO) सिविल सोसाइटी, क्लब
व अलाभकारी संस्थाएं (NPO)
स्वैच्छिक संस्थाओं में बहुत सी विभिन्नताएं है
जन संगठन, जमीनी संगठन,ससाधन संगठन, मानव अधिकार संगठन, सामाजिक कार्यवाई समूह,सहायता समूह, नेटवर्क आदि कानूनी पहलु देखेंगे तो सोसाइटी ( सोसाइटी में स्वंय सहायता समूह, क्लब, स्कुल कालेज, अस्पताल व शासन के भी बहुत से अर्धशासकीय संस्थाएं है ) ट्रस्ट कम्पनी एक्ट के तहत पंजीकृत संस्थाएं भारत में सदियों से सेवा भाव का स्वरुप इतिहास में पढ़ने को मिलता है , जब आजाद हुआ तो बहुत से लोग बिगड़े हुए हालात को सामान्य करने हेतु मदद किए, यही तो समाज सेवा |अगर हम सरल शब्दों में इसकी व्यख्या करें तो यही की जरूरतमंद की समय पर सहायता करना ही समाज सेवा है | पहले बिना किसी के सहयोग या लाभ के सेवा करते थे धर्मशाला, प्याऊ, कुआं, आदि की व्यवस्था कर सेवा होती रही है बाद में सरकारे इसे कानूनी जमा पहनाने लगी सेवा को पंजीयन कराने के लिए कहा गया | फिर बाहर से आने वाली सहायता पर नियंत्रण के लिए FCRA कानून लाया गया और लेखा जोखा पर नियंत्रण करने के लिए इनकम टैक्स लेकर आए | अब संस्थाओं का एक बड़ा समय इन सब कामों में जाता है | या तो आप अपने घर से खर्च कर समाज सेवा कीजिए या अगर आप दान एकत्र कर लोगों की मदद करना चाहते है तो कानूनी पचड़े में जाइए | बहुत सी संस्थाएं विशेषकर जो अध्ययन कर इस दिशा में कार्य शुरू की उन्होंने तो अपने आपको इसके लिए अपने आपको तैयार किया और काम पर लग गए ऐसे संस्थाओं की प्रबंधन क्षमता सशक्त होती है | और दानदाता ऐसे ही संस्थाओं को ज्यादा तलाशते है ताकि काम करते समय कोई कानून या अन्य दिक्कत न आए |
इसी में बहुत सी संस्थाएं जो सिमित जानकारी सिमित योग्यता के साथ जमीनी स्तर पर कार्य शुरू की ऐसी संस्थाओं में अधिकाँश संस्थाओं ने अपने आपको ज्यादा तैयार नही किया | कही से पता चला पंजीयन कर समाज सेवा कर सकते है तो किसी तरह पंजीयन करा लिए संस्था बन गई | फिर कहीं से पता चला की इसके लिए अनुदान भी मिलता है फिर अनुदान खोजने लगे कोई कुछ भी बताया उधर का ही रास्ता पकड़ लिए | इसकी बढ़ोत्तरी देख बहुत से दलाल भी बाजार में आ गए कोई कानूनी पंजीयन की बात करने लगा कोई फंड दिलाने की | ऐसे में बहुत से लोग दलालों के चंगुल में फंसे भी और शोषण भी हुआ |
जमीनी स्तर की संस्थाओं की स्थिति –
1- आए दिन नई संस्थाओं का पंजीयन होता है जिससे संस्थाओं की संख्या बहुत है
2- सोसाइटी पंजीयन के अलावा ज्यादा जानकारी नही है कुछ गिनती की संस्थाएं है जिन्हें FCRA या इनकम टेक्स की जानकारी है
3- पंजीयन के बाद क्या करना है ये पता नही
4- दानदाताओं के सम्बन्ध में ज्यादा जानकारी नही
5- प्रोपोजल लिखने या रिपोर्ट तैयार करने में भी बहुत सी संस्थाए सक्षम नही
6- अगर कुछ छोटा छोटा काम किए भी तो उनकी दस्तावेज ठीक से बना नही
दानादाता
शासकीय परियोजनाए- शासन के परियोजनाओं तक पहुचना इतना आसान नही, अक्सर सुस्न्ने को मिलता है की ब्य्रुक्रेट्स के अपने NGOs रहते है जिन्हें ज्यादा काम मिलता है या फिर बड़ी संस्थाएं है जो राज्य के बाहर से आती है उन्हें काम मिल जाता है लेकिन स्थानीय संस्थाओं को काम बहुत ही मुस्किल होता है मिलना |
विदेशी दानदाता – विदेशी दानदाता भी सीधे जमीनी स्तर की संस्थाओं तक नही पहुंचती वप बड़ी बड़ी संस्थाओं के माध्यम से नीचे आती है लेकिन वर्तमान नए FCRA कानून के कारण वो भी बंद हो गया
सी एस आर- सी एस आर फंड को तो जमीनी संस्थाएं सिर्फ सपनों में देखती है कुछ को मिल भी जाता हो उनकी संख्या ना के बराबर ही होगी |
जमीनी स्तर पर संस्थाएं
जमीनी स्तर भी कई प्रकार की संस्थाएं है जिनमे शहर के भीतर कुछ संस्थाएं चन्दा संकलित कर समय – समय पर समसामयिक मुद्दों पर कार्य करती रहती है कुछ क्लब है जो इसी तरह का कार्य करते रहते है |
तो अगर हम इसे देखे तो इस प्रकार विभाजित कर सकते है कि
कुछ संवेदनशील लोग जो क्लब या सोसाइटी बनाकर समसामयिक मुद्दों पर कार्य करते है, ब्लड डोनेशन, वृद्धाआश्रम, एम्बुलेंस, स्वास्थ्य कैम्प, वृक्षारोपण आदि |
एक परियोजना आधारित संस्थाएं जो शासन से या विदेशी अनुदान, सी एस आर या अन्य स्रोतों से परियोजना के लिए धन एकत्र कर कार्य करती है
एक जो स्कुल, कालेज,अस्पताल के द्वारा कार्य करती है लेकिन ये वर्ग पूर्ण आयजनक होती है इसलिए अब लोग इन्हें स्वैच्छिक में नहीं मानते लेकिन कानूनी रूप से इन्हें ये दर्जा हासिल है
चुनौतियां
जमीनी स्तर की छोटी छोटी संस्थाओं के अनेको चुनौतियां है जिनमे
1- जानकारी का अभाव कानूनी / धन प्राप्त करने के स्रोत व् उन्हें प्राप्त करने के तरीकों का
2- जानकारी का आभाव होने से उनकी दस्तावेज व्यवस्थित नही होता
3- भाषा एक चुनौती होती है विशेषकर विदेशी स्रोतों से धन प्राप्त करने के लिए
4- नया FCRA संसोधन कानून
5- आए दिन हो रहे कानूनों में संसोधन
6- संसाधन की कमी ( भागदौड़ के लिए )
7- अपने छोटे छोटे प्रयासों को सही तरीके से उचित जगह पर प्रस्तुत न कर पाना
8- शासन के समन्वय का अभाव
9- दानदाता के सम्बन्ध में जानकारी न होने व् संसाधन की कमी होने से संवाद नही कर पाते
10- संस्थागत / कार्यकर्ता स्तर पर आत्मनिर्भरता की दिशा में व्यापक सोच का अभाव
11- संस्थाओं में स्थायित्व को लेकर बहुत समस्या है
12- बिना अनुदान के संस्था कैसे संचालित हो इसके लिए व्यापक रणनीति नही दिखाई देती
13- संस्थाओं के मुदद आधारित बहुत से संगठन है लेकिन कोई ट्रेड यूनियन नही है जो
संस्था में कार्यरत मानव हितों की आवाज उठाए
अवसर
1- जमीनी स्तर पर कार्य करने के व्यापक अवसर है
2- क्षेत्रों में ग्राम स्तर पर लोगों का सहयोगात्मक रवैया होता है
3- स्थानीय संसाधनों से बहुत से कार्य किए जा सकते है
4- संस्याएं बहुत है जहा संस्थाओं के कार्य की जरूरत है
5- बहुत से विभाग के पास संस्थाओं के साथ कार्य करने के लिए परियोजनाएं होती है
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ोरोना महामारी में स्वैच्छिक संस्थाएं
पिछले वर्ष जब कोरोना की लहर आई थी उस समय चारो तरफ अचानक लाक डाउन से स्थिति बिगड़ गई | प्रसाशन आपातकाल के लिए स्वैच्छिक संस्थाओं के सहयोग लेने के लिए जिले में सूचि बनाने में लग गए कुछ संस्थाओं ने अपना नाम दिया इसमें ज्यादात्र शहरी क्षेत्रो में कार्य करने वाले स्वैच्छिक संस्थाएं रहे |
जब मजदूर पैदल वापस अपने घरों की बढ़े और एक बड़ा दबाव का निर्माण हुआ तब बहुत से स्वैच्छिक संस्थाएं आए आए और अपने – अपने तरह से कार्य करने की कोशिश करने लगे लेकिन लाक डाउन होने से उन्हें अनुमति नही मिली तो चुपचाप जो भी कार्य कर सकती थी करते रहे कुछ संस्थाओं को शासन ने अनुमति दी लेकिन बहुतायत संस्थाओं को अनुमति नही मिल पाई | लेकिन जैसे ही लाक डाउन खुला संस्थाएं अपने अपने क्षेत्रो की तरफ भागी और जितनी व्यवस्था हो सकती थी अपने दानदाता से या अन्य स्रोतों से लोगों ने हर संभव मदद करने का प्रयास किया |
अब जब दुसरी लहर कोरोना की आई तो इस बीच बहुत से संस्थाओं के पास परियोजनाएं ही नही रही, कोई नई परियोजना ला भी नहीं सकते थे क्योकि FCRA का नया एकाउंट खोलना था जो खुला नही | FCRA के नए कानून के कारण बहुत से बड़ी संस्थाएं जो छोटे छोटे जमीनी संस्थाओं को सहयोग करती थी वे नही कर पाई तो जमीनी स्तर की बहुतायत संख्या में संस्थाएं राहत में कार्य नही कर पा रही |
सभी को इन्तजार है किसी नए रास्ते का अब देखते है वो रास्ता कब बनाता है
संजय शर्मा - सामाजिक कार्यकर्ता
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