संक्षिप्त परिचय – स्वैच्छिक संस्था व्यक्तियों का एक समूह होता है जो अपने व्यक्तिगत हितों से उपर उठाकर दूसरों के लिए समाज के लिए कार्य करते है | भारतीय संस्कृति में धर्म,नैतिकता,परोपकार में विस्वास करने वाली भावनाएं शुरू से ही रही हैं |
कौटिल्य ने कहा था प्रत्येक सभी समाज के नागरिको व् वहा के राजा को वृद्ध, निशक्तजन, रागी बच्चे तथा महिलाओं के प्रति सहयोग तथा सहानुभूति की भावना रखनी चाहिए |
स्वैच्छिक संस्थाएं प्रजातंत्र की जान है और ये लचीला होती है ये अपने अंदर लोगों को उपर लाने की भावना रखता है | किताबों से पता चलता है की मानव कल्याण सदियों से चला आ रहा है इसके प्रमाण उपलब्ध भी है | जरुरतमन्द की मदद करना एक परम्परा रही है | पूर्वज भी अपाहिजों, असाध्य रोगियों की सेवा करना पुन्य समझते थे | भूकम्प, बाढ़ ,अग्निकांड, युद्ध, अकाल, महामारी, आपदा, तूफ़ान आदि से प्रभावितों की मदद मानवता की भावना से मिलकर किया जाता रहा है पहले राजा, धनी व्यक्ति व जमीदार जन कल्याण व परोपकार का कार्य करते थे प्राचीन कुवें, तालाब, धरोहर, फलदार वृक्ष, आराम गृह इसके प्रमाण के रूप में देखने को मिलते है | बाद में तीर्थ स्थल व अन्य आवश्यक स्थाओं पर मानव कल्याण के लिए स्वैच्छिक संस्थाएं कार्य करना शुरू किया |
सन 1600 में इष्ट इंडिया कम्पनी के माध्यम से भारत ब्रिटिश सत्ता का प्रवेष हुआ | यूरोप के पुनर्जागरण काल विज्ञान का विकास तथा भारत में अंग्रेजी शिक्षा के प्रसार के लिए साथ ही सम्पूर्ण सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक परिदृश्य बदलने लगे | सन 1858 में मद्रास (वर्तमान चेन्नई ) में स्थापित Friends in society नामक स्वैच्छिक संगठन को भारत के स्वैच्छिक संगठनों के इतिहास में प्रारम्भिक प्रयास मना जा सकता है ( साभार-डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू.एमपीजीकेपीडीएफ.काम)
आज भी लोग जरुरतमन्द की मदद करना अपना मानवता धर्म मानते है और गर्मियों में प्याऊ, वृक्षारोपण व साफ़ सफाई के माध्यम से सेवा करते रहते है |
वर्तमान समय में स्वैच्छिक संस्थाओं का दायरा बड़ा है कई बहुत सारे क्षेत्रों में स्वैच्छिक संस्थाए कार्य कर रही है | सबसे पहले यह समझना जरुरी है की स्वैच्छिक संस्थाएं कितने प्रकार की होती है | कानून के दृष्टि से तो स्वैच्छिक संस्थाएं सोसाइटी, समिति, ट्रस्ट, कम्पनी एक्ट, सी एस आर, के माध्यम से होती है | लेकिन कार्य करने के तरीके से स्वैच्छिक संस्था गाधीवादी विचारधारा से प्रेरित संस्थाएं,रचनात्मक कार्य करने वाली संस्था, एक्टिविस्ट के रूप में कार्यरत संस्थाए, क्षमता विकास के लिए कार्यरत संस्थाए होती है लेकिन स्कुल, कालेज, अस्पताल, क्लब आदि भी इसी के दायरे में आते है |
संस्थाओं के लिए कानून – स्वैच्छिक संस्थाओं का पंजीयन सोसाइटी एक्ट, ट्रस्ट एक्ट, व अक्म्प्नी एक्ट के तहत किया जाता है | इसके अलावा स्वैच्छिक संस्थाओं को इनकम टैक्स के तहत 12-A, 80 G का पंजीयन होता जिससे इनकम टैक्स में छुट मिलती है | विदेशी अनुदान लेने के लिए FCRA के अंतर्गत पंजीयन करना पड़ता है तथा अब नए नियम में CSR से अनुदान लेने के लिए CSR के तहत पंजीयन आवश्यक है |
दानदाता व संस्थाएं – स्वच्छिक कार्यों के लिए तो देश में हर कोई मदद करटा है इसी प्रथा रही है | लेकिन अब पंजीकृत स्वैच्छिक संस्थाओं की केंद्र व् राज्य शासन की बहुत योजनाओं से वित्तीय सहयोग मिलता है इसके अलावा विदेशी दानदाता संस्थाएं भी परियोजनाओं के माध्यम से मदद करती है | CSR के तहत भी स्वैच्छिक संस्थाओं को वित्तीय सहायता प्राप्त होती है | इसके अलावा स्थानीय समुदाय के लोग भी स्वैच्छिक प्रयासों में मदद करते है | शहरी क्षेत्रों में कार्य करने वाली संस्थाएं में अधिकाँश संस्थाएं तो अक्सर लोगो के मदद से ही भोजन, दवाई, प्याऊ, साफ़ –सफाई आदि का कार्य करती है |
संस्थाओं के काम करने का तरीका – स्वैच्छिक संस्थाओं का जन्म ही किसी न किसी समस्याओं के निरकरण के लिए होता है | कुछ संस्थाएं विषय विशेष के रूप में कार्य करती है तो कुछ संस्थाएं एकीकृत मुद्दों पर कार्य करती है लेकिन सभी स्वैच्छिक प्रयासों के कार्य करने का तरीका सहभगिता पर आधारित होता है | जिनके लिए कार्य करती है उनके साथ बैठकर योजना बनाते है और उनके साथ मिलकर ही उसका क्रियान्वयन करते है |
संस्थाएं किनके लिए कार्य करती है – स्वैच्छिक संस्थाएं हमेशा जरुरतमन्द व गरीब समुदायों के लिए कार्य करती है बहुत सी संस्थाएं सुदूर क्षेत्रों में पहुचविहीन व दुर्गम क्षेत्रों में कार्य करती है | इसके अलावा महामारी, आपदा आदि के बढ चढ़ कर कार्य करती है ताकि आकस्मिक समस्या से तत्काल निपटने आसानी हो प्रभावित लोगों को तत्काल राहत मिले | बच्चे, बुजुर्ग, दिव्यांग, महिला तो प्राथमिकता में रहती ही है लेकिन अब स्वैच्छिक संस्थाएं कृषि, वन, पर्यावरण, जैव विविधता, शिक्षा, स्वास्थ्य,आदि लभग सभी मुद्दों पर कार्य कर रही है |
संस्थाएं व आन्दोलन – स्वैच्छिक संस्थाएं व आंदोलनों का भी पुराना इतिहास है | गाधी जी ने असहयोग आन्दोलन किया तो विनोवा जी ने भूदान आन्दोलन, जेपी का सम्पूर्ण क्रान्ति आन्दोलन तो मेघा पाटकर का नर्मदा बचाओं आन्दोलन, अन्ना हजारे का लोकपाल आन्दोलन | इन आंदोलनों की एक खूबी यह रही की इन्हें जनता का भरपूर समर्थन मिला | यही से स्वैच्छिक संस्थाओं का राजनितिक दलों से द्वंद शुरू होता है | और हर आन्दोलन के बाद स्वैच्छिक प्रयासों को दबाने के लिए हमेशा नए नए कानूनों को थोपा गया | जिससे स्वैच्छिक प्रयासों को सँभालने में समय लगता है लेकिन बावजूद इसके सभी खड़े रहते है |
संस्थाएं व मीडिया – मीडिया मुद्दों को लेकर हमेशा साथ दिखाई देती है लेकिब जब जब सरकार कानून की लगाम लगाती है तो मीडिया भी स्वैच्छिक संस्थाओं का साथ छोड़ देती है और संस्थाएं अकेले ही लड़ाई लडती है | बहुत समय मीडिया स्वैच्छिक संस्थाओं को हतोत्साहित करने का कार्य भी करती है |
संस्थान व् लोग – स्वैच्छिक संस्थाओं को लोग अच्छे नजर से नहीं देखते इसके पीछे कई कारण हो सकते जिनमे सबसे प्रमुख है शोषण व अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाते रहना | लेकिन बड़ी बड़ी स्वैच्छिक संस्थाओं को लोग खुलकर मदद करते देखे जाते है | इससे लगता है की स्वैच्छिक संस्थाओं की साख लोगों के बीच अच्छी है | आपदा व महामारी के समय लोग खुलकर स्वैच्छिक संस्थाओं के साथ मिलकर कार्य करते है |
समाज सेवा की शिक्षा – पिछले कुछ दशक से शिक्षा में विशेषज्ञता के रूप में मास्त आफ सोशल वर्क (MSW) शुरू किया गया इससे युवा पढ़ाई कर समाज सेवा के क्षेत्र में रोजगार के उद्देश्य से आने लगे | इसके पूर्व लोग शौक से समाज सेवा करने के लिए आते थे |
वर्तमान सन्दर्भ ( जमीनी स्तर पर कार्यरत संस्थाओं के सन्दर्भ में ) – हम वर्तमान समय की बात करें तो इस समय जो जमीनी स्तर पर कार्य करने वाली स्वैच्छिक संस्थाएं उनके समक्ष काफी सारी चुनौतियां है | सबसे पहले तो यह जान ले की जमीनी स्तर पर कार्य करने वाली संस्थाएं कार्य करने में ज्यादा विस्वास करती है | जमीनी स्तर की कभी पेशेवर (Professional) सेवा के रूप में कार्य नही बाकि वे मानवता के हिसाब से दिल से कार्य करती है | इसलिए जरूरत के हिसाब से काम जितना में चल जाए उतना ही तैयारी करती है और काम करती रहती है | लेकिन जब कोई कानून नया आता है तो उससे निपटने में उसका संमाधान करने में परेशान हो जाती है | उसकी जानकारी एकत्र करना उसकी जटिल प्रक्रियाओं से गुजरना छत्तीसगढ़ जैसे हिंदी भाषी जगह में तो हिंदी और अंगरेजी के कारण बहुत सारी समस्याए आती है | केंद्र से जो भी कानून बनते है है वो अंगरेजी में ज्यादातर होते है | यहाँ लोग हिंदी जानते है जिसके कारण इंग्लिश जानने वालो के उपर निर्भरता बढ़ जाती है | परियोजना बनाने से लेकर रिपोर्ट लिखने तक में गुणवता की कमी देखि जाती है |
प्रबंधन क्षमता की कमी के चलते संस्थान को चलाने के लिए कारपस फंड जैसी व्यवस्था पर नही काम करते और छोटी संस्थाओं को वित्तीय सहयोग देने वाली संस्थाएं भी इस तरह का कुछ मदद नही करती है | जिससे जमीनी स्तर की संस्थाओं को इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करने में कठिनाई होती है | शासन की परियोजनाओं को लाना इतना आसान नही होता सभी जानते इमानदारी से शासन की परियोजनाओं को ला पाना नामुमकिन है | बहुत सी संस्थाएं शासन के साथ कार्य करती है कैसे करती है ये तो वाही बता सकती है | सीएसआर परियोजनाओं में छोटी संस्थाओं के लिए तो शायद जगह ही नही होती | एक विदेशी दानदाता संस्थाएं FCRA में नए संसोधन से पूर्व राष्ट्रीय स्तर की संस्थाएं विदेशी दाताओं से वित्तीय सहयोग लाती थी जिसे छोटी छोटी संस्थाओं के साथ सहयोग कर कार्य करती थी लेकिन नए संसोधन से यह रास्ता बंद हो गया जिसका सबसे ज्यादा प्रभाव जमीनी स्तर पर कार्य करने वाली संस्थाओं व् उनके कार्यकर्ताओं पर पड़ा | कार्यकर्ताओं की नौकरी चली गई कोई पूछा भी नही की कितने समाज सेवी बेरोजगार हो गए | उनके काम मिला या नहीं पता करने वाला भी नही | कई छोटी संस्थाएं इसी परियोजनाओं के बंद होने से दुसरे बड़ी संस्थाओं के यहाँ नौकरी करने की नौबत में आ गए | कई संस्थाएं बंद हो गई | उन्हें कोई काम देने वाला नहीं है शासन की योजनाओं से कभी कुछ ट्रेनिंग मिल गया कुछ जागरूकता मिल गया था उसमे मानदेय इतना कम मिलता है की उसका खर्च बहुत मुस्किल से चल पाता है कैसे चलाता है ये तो वाही बता सकता है | इस छोटे से काम के लिए कितना पापड़ बेलना पड़ता है यह व्ही बता सकता है |
जमीनी स्तर पर कार्य करने वाली छोटी –छोटी संस्थाओं व् सामाजिक कार्यकर्ताओं का उपयोग तो सभी करते है लेकिन उनकी समस्याओं पर आवाज उठाने में कोई सामने नहीं आता | कोई एसा संगठन भी नही है उनके समस्याओं के लिए आवाज उठाए या यूँ कहें की सामाजिक कार्यकर्ताओं का कोई संगठन ही नही है जो उनकी या उनके परिवार के समस्याओं के लिए खडा हो |
समाज सेवा से जुड़े लोगों का भाविष्य – जमीनी स्तर पर कार्य करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता या संस्था प्रमुख भी उनका भविष्य तब तक सही नही है जब तक कि वे अपनी क्षमताओं को बढाते नही है संस्थागत इंफ्रास्ट्रक्चर व आयउपार्जन की गतिविधियाँ संचालित नही करते है
राजनितिक दलों का प्रवेश – स्वैछ्चिक संस्थाओं का एक विंग राजनितिक दल स्वंय का तैयार कर रहे है या पूर्व में भी किए हुए है उसके कारण स्वैच्छिक संस्थाओं के सामने के बड़ी चुनौती और खादी हो रही है जो गैर राजनीती से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता लोग है |
समाधान – जमीनी स्तर स्तर की संस्थाओं व् सामाजिक कार्यकर्ताओं को समस्याओं से निपटने के लिए तैयारी करनी होगी स्थाई विकास की योजानाएं बनाएं अपनी तकनिकी दक्षता में वृद्धि करें इन्फ्रास्ट्रक्चर पर कार्य करें | लोगों के आय वर्धन के साथ- साथ संस्थागत आय वर्धक गतिविधियाँ भी संचालित करें | अपनी निर्भरता वित्तीय संस्थानों से हटाकर स्वंय संस्थागत आय वृद्धि पर केन्द्रित करें |
संजय शर्मा -सामाजिक कार्यकर्ता , ब्लागर, यूट्यूबर, कानून विशेषज्ञ