छत्तीसगढ़
राज्य के बिलासपुर जिले में कोटा तहसील के अंतर्गत ग्राम पंचायत बहेरामुडा में कुल
३६५ आदिवासी ,दलित व पिछड़ा समुदाय के लोग रहते है , इन परिवारों में ९० परिवार
बैगा समुदाय के है जो की पी टी जी क्षेणी के तहत आते है , जिन्हें भारत सरकार के
प्रथम राष्ट्रपति द्वारा वर्ष १९५२ में विशेष संरक्षित जाति घोषित किया गया था |
इस
ग्राम पंचायत में ये बैगा परिवार के पूर्वज १९४७ के पूर्व से ही वन भूमि पर काबिज
होकर निवास करते आ रहे है , वर्ष १९७० में वन विभाग ने इन परिवारों को जंगल से
बाहर लाकर ५-५ एकड़ भूमि देकर बसा दिया |
वर्ष
२००१ में वन विभाग द्वारा इनके भूमि पर बॉस के पौधे का रोपड़ करा कर इन्हें जमीन से
बेदखल कर दिया गया | वन विभाग के इस कार्यवाही का ग्राम की बैगा समुदाय की महिलाओं
ने संगठित होकर विरोध करने का निर्णय लिया और विभाग द्वारा लगाए गए बॉस के पौधो को
उखाड़ के फेक दिया और अपने भूमि पर खेती किसानी कर अपने परिवार का जिविको पार्जन
करने लगे |
३१-१२-२००७
को वन विभाग द्वारा ग्राम की २६ बैगा महिलाओं के बिरुद्ध भारतीय वन अधियम १९२७ के
तहत वाद दायर किया गया इन महिलाओं पर वन भूमि पर अतिक्रमण करने का आरोप लगाया गया
| जिस पर बैगा महिलाओं ने संगठित होकर क्षितिज संस्थान के साथ मिलकर न्यायालय – न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी कोटा
जिला बिलासपुर में एक वर्ष तक केश लड़ा अंत में न्यायालय ने इन महिलाओं को दोष
मुक्त कर वाद खारिज कर दिया |
क्षितिज
संस्थान के सहयोग से ग्राम की इन बैगा परिवारों की महिलाओं ने वन अधिकारों की
मान्यता कानून २००६ के तहत वन भूमि अधिकार पत्र प्राप्त करने हेतु आवेदन किया
लेकिन अभी तक भूमि का अधिकार पत्र प्राप्त नहीं हुआ है | ये महिलाए लगातार संगठित
होकर अपने भूमि के अधिकार प्राप्ति के लिए संघर्षरत है इसके सम्बन्ध में
मुख्यमंत्री छत्तीसगढ़ शासन तक अपनी आवाज को आवेदन के माध्यम से पहुचाने का भी प्रयास
किया है ,जो एक उदाहरण है अन्य ग्रामो की दूसरी महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत बन
रही है |
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