छत्तीसगढ़ राज्य के
सरगुजा जिले में अंबिकापुर विकास खंड के ग्राम चितरपुर में आथिक आभाव के कारण 14
वर्षीय आदिवासी बालिका उर्मिला ने पढ़ाई छोड़ गाय भैंस चराने लगी | उसने मजबूरी में
पढ़ाई छोड़ दी थी और उसे ये भी नहीं पता कि ऐसी बालिकाओं के लिए शासन शिक्षा के आधिकार
के तहत निशुल्क शिक्षा कि व्यवस्था कि हुई है |
जब बाल पंचायत व
श्रमिक स्वराज्य संगठन को उर्मिला के पढ़ाई छूटने के बारे में पता चला तो उन्होंने
ग्राम में होने वाली बैठक में उर्मिला के पिता फगुना व माता बुधियारो को बुलाया और
उसके स्कुल न जाने के कारण पर चर्चा कि तो पता चला कि वे उसके पढ़ाई का खर्च उठाने
के लिए सक्षम नहीं तब संगठन के लोगो ने शिक्षा के अधिकार कानून २००९ के तहत मिलने वाले
लाभ के सम्बंध में जानकारी दी और उर्मिला को स्कुल भेजकर आगे और पढ़ाई कराने को कहा
साथ ही मदद का आश्वासन भी दिया |
निशुल्क पढ़ाई कि
व्यवस्था कि बात सुनकर उर्मिला के माता पिता का थोड़ा मन बदला लेकिन फिर उन्हें लगा
कि अगर उर्मिला पढ़ने चली जाएगी तो घर का काम कौन करेगा ? कौन भैंस को चरायेगा ?
लेकिन जब बाल पंचायत के बच्चे व ग्रामवासियों ने उर्मिला के पिता को बार – बार
स्कुल भेजने कि सलाह देने लगे तब जाकर वह स्कुल भेजने को तैयार हो गया तब श्रमिक
स्वराज संगठन के साथियो ने उर्मिला का कक्षा 6 वी में पढ़ने हेतु स्कुल में प्रवेश
दिला दिया |
स्कुल में प्रवेश मिलते ही उर्मिला का चेहरा खुशी से
खिल उठा उसके माता पिता के चेहरे पर भी खुशी आ गई |
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