देश में बाल यौन शोषण रोकने के मामले में राज्यों की तरफ से बरती जा रही लापरवाही को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी की है | सुप्रीम कोर्ट ने कहा की यह राज्यों का कर्तव्य है की वे ऐसा स्वस्थ वातावरण बनाए , जिससे बच्चो का बचपन बेहतर हो सके |
जनवरी में दीए आदेश का नहीं हुआ पालन
सुप्रीम कोर्ट ने बच्चो के यौन शोषण और इसके रोकथाम के उपायों की कमी को लेकर चिंता जाहिर की और सभी राज्यों के मुख्य सचिवो को आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया है | गौरतलब है की इस वर्ष जनवरी में सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशो को प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रन फ्राम सेक्सुअल आफिसेस एक्ट -२०१२ राईट आफ चिल्ड्रन्स टू फ्री एंड कम्पलसरी एजुकेशन एक्ट -२००९ व कमीशन फार प्रोटेक्शन आफ चाइल्ड राइट्स एक्ट २००५ को लागू करने का निर्देश दिया था | इसी मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस एस. एस. निजार व जस्टिस इब्राहिम कलिफुल्ला की बेंच ने कहा की कई राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशो ने पिछले निर्देशों को नहीं माना है |
बाल आयोग कागजो पर
बेंच ने कहा की राज्यों के हलफनामो से पता चलता है की राज्यों ने बाल अधिकार आयोगों का गठन किया है , लेकिन वास्तविकता यह है की ज्यादातर आयोग केवल कागजो पर ही है | कई राज्यों में आयोग के अध्यक्षों की नियुक्ति नहीं हुई है, तो कुछ राज्यों ने सदस्यों की नियुक्ति नहीं की है और अन्य जरुरी नियम - विनियम भी नहीं बनाए है | बेंच ने कहा की अदालत गंभीर रुख अपनाए और निर्देशों पर अमल न करने वाले राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशो के खिलाफ अदालती - अवमानना की कार्यवाही करे , इसके लिए उक्त आधार पर्याप्त है |
राज्यों का अनिवार्य कर्तव्य
बेंच ने कहा की बाल यौन - शोषण रोकने के सम्बन्ध में अदालत के निर्देश पर राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशो का लापरवाह रवैया पूर्ण रूप से अस्वीकार्य है | भविष्य में बच्चो को और अधिक यातना से बचाने के लिए दोबारा यह स्पष्ट करना जरुरी हो गया है की संविधान के अनुच्छेद -२१ , २१ ए ,२३, २४, और ५१ (ए) (के) के तहत राज्यों का यह अनिवार्य कर्तव्य है की वे बच्चो के लिए ऐसा सुरक्षित व स्वस्थ माहौल बनाए , जिसमे उनके बचपन को उचित रूप में विक्सित होने का मौका मिल सके और वे आगे चलाकर परिपक्व एवं जिम्मेदार नागरिक बन सके |
बेंच ने कहा की राज्यों व केंद्र शासित प्रदेह्सो की लापरवाही तकलीफ़देह है | इस स्तर पर अब हमारे पास इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है की नए अनिवार्य निर्देश जारी किए जाए , ताकि जीवन से सभी मौको पर बच्चो के शोषण को ख़त्म करने की दिशा में अत्यधिक परिणाम हासिल किया जा सके |
आठ हफ्ते में लागू हो आदेश
निश्चित तौर पर राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशो को यह महसूस होना चाहिए की उनका शासन - प्रशासन संविधान के अधीन है | बेंच ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवो ( जिन्हें नोटिस जारी किया गया ) को निर्देश दिया की वे इस आदेश से अगले आठ हफ्ते के भीतर उपरोक्त तीनो अधिनियमों के तहत निर्धारित विशेष दायित्वों को लागू करने के बारे में पुरी जानकारी उपलब्ध कराए | बेंच ने यह भी कहा की दिए गए निर्देशों के किसी भी हिस्से का पालन न हो पाने की स्थिति में राज्य सरकार में प्रधान सचिव स्तर का जो भी अधिकारी होगा , वह व्यक्तिगत रूप से अगली सुनवाई पर अदालत में मौजूद रहेगा और निर्देशों को लागू करने में विफल होने की स्थिति में अपना पक्ष रखेगा | यदि किसी भी वजह से अगली सुनवाई से पहले मुख्या सचिव की तरफ से हलफनामा पेश नहीं किया जाता है , तो इसी पदक्रम का अधिकारी अदालत में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर राज्य की तरफ से हलफनामा न पेश करने का कारण स्पष्ट करेगा |
साभार - पत्रिका एक्सपोज रायपुर २०-१२-२०१३
जनवरी में दीए आदेश का नहीं हुआ पालन
सुप्रीम कोर्ट ने बच्चो के यौन शोषण और इसके रोकथाम के उपायों की कमी को लेकर चिंता जाहिर की और सभी राज्यों के मुख्य सचिवो को आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया है | गौरतलब है की इस वर्ष जनवरी में सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशो को प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रन फ्राम सेक्सुअल आफिसेस एक्ट -२०१२ राईट आफ चिल्ड्रन्स टू फ्री एंड कम्पलसरी एजुकेशन एक्ट -२००९ व कमीशन फार प्रोटेक्शन आफ चाइल्ड राइट्स एक्ट २००५ को लागू करने का निर्देश दिया था | इसी मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस एस. एस. निजार व जस्टिस इब्राहिम कलिफुल्ला की बेंच ने कहा की कई राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशो ने पिछले निर्देशों को नहीं माना है |
बाल आयोग कागजो पर
बेंच ने कहा की राज्यों के हलफनामो से पता चलता है की राज्यों ने बाल अधिकार आयोगों का गठन किया है , लेकिन वास्तविकता यह है की ज्यादातर आयोग केवल कागजो पर ही है | कई राज्यों में आयोग के अध्यक्षों की नियुक्ति नहीं हुई है, तो कुछ राज्यों ने सदस्यों की नियुक्ति नहीं की है और अन्य जरुरी नियम - विनियम भी नहीं बनाए है | बेंच ने कहा की अदालत गंभीर रुख अपनाए और निर्देशों पर अमल न करने वाले राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशो के खिलाफ अदालती - अवमानना की कार्यवाही करे , इसके लिए उक्त आधार पर्याप्त है |
राज्यों का अनिवार्य कर्तव्य
बेंच ने कहा की बाल यौन - शोषण रोकने के सम्बन्ध में अदालत के निर्देश पर राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशो का लापरवाह रवैया पूर्ण रूप से अस्वीकार्य है | भविष्य में बच्चो को और अधिक यातना से बचाने के लिए दोबारा यह स्पष्ट करना जरुरी हो गया है की संविधान के अनुच्छेद -२१ , २१ ए ,२३, २४, और ५१ (ए) (के) के तहत राज्यों का यह अनिवार्य कर्तव्य है की वे बच्चो के लिए ऐसा सुरक्षित व स्वस्थ माहौल बनाए , जिसमे उनके बचपन को उचित रूप में विक्सित होने का मौका मिल सके और वे आगे चलाकर परिपक्व एवं जिम्मेदार नागरिक बन सके |
बेंच ने कहा की राज्यों व केंद्र शासित प्रदेह्सो की लापरवाही तकलीफ़देह है | इस स्तर पर अब हमारे पास इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है की नए अनिवार्य निर्देश जारी किए जाए , ताकि जीवन से सभी मौको पर बच्चो के शोषण को ख़त्म करने की दिशा में अत्यधिक परिणाम हासिल किया जा सके |
आठ हफ्ते में लागू हो आदेश
निश्चित तौर पर राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशो को यह महसूस होना चाहिए की उनका शासन - प्रशासन संविधान के अधीन है | बेंच ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवो ( जिन्हें नोटिस जारी किया गया ) को निर्देश दिया की वे इस आदेश से अगले आठ हफ्ते के भीतर उपरोक्त तीनो अधिनियमों के तहत निर्धारित विशेष दायित्वों को लागू करने के बारे में पुरी जानकारी उपलब्ध कराए | बेंच ने यह भी कहा की दिए गए निर्देशों के किसी भी हिस्से का पालन न हो पाने की स्थिति में राज्य सरकार में प्रधान सचिव स्तर का जो भी अधिकारी होगा , वह व्यक्तिगत रूप से अगली सुनवाई पर अदालत में मौजूद रहेगा और निर्देशों को लागू करने में विफल होने की स्थिति में अपना पक्ष रखेगा | यदि किसी भी वजह से अगली सुनवाई से पहले मुख्या सचिव की तरफ से हलफनामा पेश नहीं किया जाता है , तो इसी पदक्रम का अधिकारी अदालत में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर राज्य की तरफ से हलफनामा न पेश करने का कारण स्पष्ट करेगा |
साभार - पत्रिका एक्सपोज रायपुर २०-१२-२०१३
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