अक्षय तृतीया के बाद तेंदूपत्ता की खरीदी शुरू होती है उसके बाद ही लोग तेंदूपत्ता की तोड़ाई करते है ताकि बेच सकें । कुछ साल पहले तक तेंदूपत्ता की खरीदी महीने भर लगभग होती थी अब सिर्फ एक हप्ते या 15 दिन ही होती है जिससे लोग अच्छी आय नही कर पाते ।
वन आधारित आजीविका के स्रोतों में से एक स्रोत है तेंदूपत्ता जिसके पौधों की संख्या दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है इसके कई कारण हो सकते है जैसा संग्रहको ने बताया कि कुछ तो पेड़ों के काटे जाने से कमी आई और कुछ जंगल मे आग की वजह से कमी आई ।
वैसे तेंदूपत्ता तोड़ाई से पहले प्रूनिंग की भी व्यवस्था हैओ लेकिन जिम्मेदार इसे अब कराते ही नही है। प्रूनिंग समय पर हो जाए तो अच्छे पत्ते पेड़ों पर निकलते है जिससे ज्यादा पत्ते तोड़ाई हो पाते है । कम तोड़ाई होने से लोगों को नुकसान हो ही रहा है साथ ही सरकार को भी नुकसान होता है लेकिन कोई फर्क नही पड़ता ।
लोगों की इच्छा है कि जनभागीदारी से पौधे लगाए जाएं ताकि खरीदी का समय भी बढ़ाया जाना चाहिए ताकि गर्मियों में जब उनके पास खेती नही होती उस समय इससे अच्छी आय अर्जित कर सके जिससे आजीविका सुरक्षित हो सके ।
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