आपराधिक
गतिविधियों में पीडितो को न्याय मिलना उनका नैसर्गिक हिकार है | हालाकि जब पुलिस आपराधिक
घटनाओं की प्राथमिकी ( प्रथम सूचना रिपोर्ट ) ही दर्ज न करे तो न्याय पाने का
अधिकार कैसे मिल सकता है | इसे देखते हुए ही सुप्रीम कोर्ट ने सभी गंभीर अपराधो
में प्राथमिकी दर्ज करना अनिवार्य बना दिया है |
प्रतिवर्ष
लाखो मामलों में नहीं दर्ज होती ऍफ़ आई आर
प्राथमिकी
दर्ज करने को अनिवार्य बनाने के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा की दर्ज न हो पाने
वाले मामलों की संख्या प्रति वर्ष लगभग ६० लाख के आसपास होती है | सुप्रीम कोर्ट
ने नॅशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो ( एन सी आर बी ) के आंकड़ो का हवाला देते हुए कहा
की किसी आपराधिक मामले में ऍफ़ आई आर दर्ज होने से छल कपट रोकने में मदद मिलाती है
और पूर्ववर्ती तारीख या जानबूझकर ऍफ़ आई आर दर्ज करने में डेरी के मामले में कमी
आती है |
एन
सी आर बी का आंकड़ा
एन सी आर बी का आकडा है की पुरे देश में २०१२
में ६० लाख संज्ञेय आपराधिक मामले दर्ज किए गए है लेकिन दर्ज न होने वाले अपराधो
की संख्या भी प्रति वर्ष ६० लाख के ही करीब होती है | कुल मिलाकर ऍफ़ आई आर दर्ज न
होने वाले मामलों की संख्या बहुत ज्यादा है | यह बड़ी संख्या में पीडितो के
अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है |
जस्टिस पी. सथासिवम ने कहा की अपराधो को दर्ज न किए जाने का अल्पकालिक
असर विधि शासन के नकारात्मक असर के टूर पर लोगो में विधि के शासन के प्रति आदर कम
करता है |
पैदा
होती है अराजकता
अपराधिक
मामलों को दर्ज न किए जाने से समाज में अराजकता की समस्या पैदा होती है | अपराध
प्रक्रिया संहिता (सी आर पी सी ) की धारा १५४ को केवल सी आर पी सी की योजना के
अनुरूप नहीं, बल्कि पुरे समाज के सन्दर्भ में पढ़ा जाना चाहिए | बेंच ने कहा की
आपराधिक मामलों की जांच और आरोपियों की सजा का निर्धारण राज्य के कर्तव्य है | खाश
टूर पर संज्ञेय अपराधो में सी आर पी सी की धारा १५७ के तहत छुट प्राप्त मामलों को
छोड़कर अन्य मामलों में ऍफ़ आई आर दर्ज करना व जांच करना पुलिस का कर्तव्य है | यदि
ऍफ़ आई आर दर्ज करने में पुलिस की मर्जी , विकल्प या अन्य छुट दी जाती है , तो यह
लोक व्यवस्था के लिए खतरा पैदा करता है और पीड़ित के समानता के मूल अधिकार का
उल्लंघन है |
लिखित
हो पुलिस कार्यवाही
सी
आर पी सी की धारा १५४(१) में “होगा
“ शब्द का प्रयोग है ,
जो स्पष्ट करता है की इस शब्द को सामान्य अर्थ को बाध्यकारी चरित्र के साथ समझे
जाने की जरुरत है | इसी आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने सभी संज्ञेय मामलों में ऍफ़ आई आर
दर्ज करना अनिवार्य बनाया है | इसके अलावा ऍफ़ आई आर दर्ज करना अधिकारियों के लिए
कानून टूर पर बाध्यकारी है | उसके बाद अपराध होने के संदेह की जांच कर सकता है |
लोकतंत्र व स्वतन्त्रता के सिद्धांत पुलिस शक्तियों के नियमन के साथ – साथ
प्रभावकारी नियंत्रण की मांग करते है | सभी गतिविधियों को दस्तावेजो में दर्ज किया
जाना भी एक प्रकार का नियंत्रण ही है | अपराध संहिता के अनुसार , पुलिस की
कार्यवाई लिखित और दस्तावेजो में दर्ज होनी चाहिए |
साभार – पत्रिका एक्सपोज रायपुर
१७-११-१३
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