Wednesday, 27 November 2013

आई टी एक्ट के प्रावधान पर सुप्रीम कोर्ट ने माँगा जबाब



सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए इनफार्मेशन टेक्नालोजी एक्ट (आई टी एक्ट ) के प्रावधान पर केन्द्रीय मंत्रालयों व राज्य सरकार से जबाब माँगा है | आई टी एक्ट में आन लाइन अपमानजनक टिप्पणी व लेखन के लिए तीन वर्ष तक जेल की सजा का प्रावधान है | जष्टिश आर. एम्. लोढ़ा व जष्टिश शिव कीर्ति सिंह की बेंच ने पीपुल्स यूनियन फार लिबर्टी (पीयूसीएल ) की जनहित याचिका पर केन्द्रीय गृह मंत्रालय व संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय को नोटिस जारी किया है | पीयूसीएल ने दण्डित करने की शक्ति पुलिस को देने वाली आईटी एक्ट की धारा ६६ए के अलावा सूचना तक जनता की पहुच रोकने व वेबसाइट्स को प्रतिबंधित करने वाले नियमो को भी चुनौती दी है | याचिका में कानून व सूचना तकनीकी विशेषज्ञों की समिति बनाने व आईटी एक्ट के हाल के मामलों की समीक्षा करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई है | याचिका में कहा गया है की आईटी एक्ट के प्रावधानों से संविधान के अनुच्छेद – १४ (समानता का अधिकार ), अनुच्छेद – १९ (वाक् व अभिव्यक्ति का अधिकार ) और अनुच्छेद – २१ (जीवन के अधिकार ) का उल्लंघन होता है | इसके अलावा आईटी एक्ट की धारा ६६ए के तहत जो प्रतिबन्ध लगाए गए है , वे संविधान के अनुच्छेद -१९(२) के दायरे में नहीं आते है | याचिका में आईटी एक्ट की धारा – ६६ए के दुरुपयोग के उदाहरण दी गए है | इसमे एक राजनेता के निधन पर अघोषित बंद को लेकर सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर की गई टिप्पणी करने व उसे लैक करने के लिए महाराष्ट्र के पालघर से दो लड़कियों की गिरफ्तारी का मामला शामिल है |
साभार –पत्रिका एक्सपोज रायपुर -२४-११-२०१३  

Saturday, 23 November 2013

आर टी आई :आवेदकों की सुरक्षा के लिए कोलकाता हाईकोर्ट का फैसला , सूचना पाने के लिए पोष्ट बाक्स नंबर पर्याप्त



सूचना के अधिकार कानून (आर टी आई ) सरकार की कामकाज के बारे में जनता को सूचित होने का अधिकार देता है | हालाकि जिस तरह से सूचना के अधिकार कानून के तहत सूचना प्राप्त करने वालो९ पर जानलेवा हमले हुए है, वे चिंताजनक माने जा रहे है | इसे ध्यान में रखकर कोलकाता हाईकोर्ट ने सूचना आवेदकों के लिए ने सुरक्षा मानक तय किए है |
आवदाको को पोष्ट बाक्स नंबर पर मिले सूचना
सूचना अधिकार कार्यकर्ताओं पर जान लेवा हमले की गंभीरता को देखते हुए कोलकाता हाईकोर्ट ने आवेदनकर्ताओ की पहचान सुरक्षित रखने के लिए आवेदन पत्र में नाम व पता देने की जगह केवल पोष्ट बाक्स नंबर देने का निर्देश दिया है | सूचना अधिकार कार्यकर्ता की याचिका की सुनवाई करते हुए कोलकाता हाईकोर्ट के चीफ जष्टिश ए.के.बनर्जी और जष्टिश डी बास्क की बेंच ने कहा की आर टी आई आवेदन में केवल पोष्ट बाक्स नंबर देकर कोई भी व्यक्ति सूचना माँगा सकता है | बेंच ने अपने फैसले में कहा की हम याचिकाकर्ता के इस तर्क में मजबूती पाते है की आर टी आई आवेदनकर्ता की निजी जानकारिया सार्वजनिक होना जरुरी नहीं है |
सभी विभाग करे उपाय
कोलकाता हाईकोर्ट की बेंच ने केन्द्रीय कार्मिक मंत्रालय के सचिव को निर्देश दिया की इस फैसले की प्रतिया सभी सम्बंधित विभागों को भेजी जाए , ताकि आवेदनकर्ताओ की निजी ब्योरे सुरक्षित रखने के बारे में जरुरी कदम उठाए जा सके | गौरतलब है की देश में सूचना माँगने वालो के उत्पीडन की घटनाए हो रही है और २०१० के बाद २३ सामाजिक कार्यकर्ताओं की ह्त्या हो चुकी है |
निजी ब्योरा माँगने पर रोक
कोलकाता हाईकोर्ट की बेंच ने कहा है की आर टी ई आवेदन करता , खाश टूर पर केवल पोष्ट बाक्स लिखने वाले आवेदकों से कोई भी प्राधिकारी ऐसी जानकारिया नहीं माँगा सकता है , जिसके जारी आवेदनकर्ता से संपर्क किया जा सके | यदि पोष्ट व्बाक्स नंबर के बारे में दिक्कत होती है तो प्राधिकारी निजी ब्योरा माँगा सकता है | हालाकि ऐसे मामले में प्राधिकारी का यह नैतिक कर्तव्य होगा की वह आवेदनकर्ता की निजी जानकारियों को सुरक्षित रखे , खाश तौर पर वेबसाईट पर डालने से बचे, ताकि ज्यादा लोगो तक आवेदनकर्ता की निजी जानकारिया न पहुच सके | गौरतलब है की याचिकाकर्ता ने आवेदनकर्ताओ की सुरक्षा के लिए निजी सूचना की जगह पोष्ट बाक्स लिखे जाने की मांग की थी |
राज्य जारी करे सुचनाए
केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों से कहा है की महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी एक्ट (मनरेगा ) सम्बंधित व सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) सम्बंधित सार्वजनिक करने और सूचना अधिकार अधिनियम के तहत पूर्व सक्रियता दिखाते हुए इस सूचना को जारी करे | केन्द्रीय कार्मिक विभाग ने इसके अलावा पंचायत व प्राथमिक सेकेंडरी स्कुल विभागों को भी निर्देश दिया है | कार्मिक विभाग के आदेश में कहा गया है की ये विभाग जमीनी स्तर पर महत्वपूर्ण सेवाए उपलब्ध कराते है , इसलिए इन्हें छुना गया है | इस विभागो के बारे में ज्यादा से ज्यादा सुचना सार्वजनिक करने का उद्देश्य कामकाज में पारदर्शिता लाना और आर टी आई आवेदनों की संख्या में कमी करना है |
साभार – पत्रिका एक्सपोज रायपुर २३-११-१३

सुरक्षा – आपदा राहत व पुननिर्माण कार्यो में धन की कमी है समस्या ,आई आर डी ए पेश किया सम्पतियो की बीमा सुरक्षा का प्रस्ताव



आपदाओं से होने वाले जान माल के नुकसान का दुष्प्रभाव अर्थव्यवस्था पर पड़ता है | यही वजह है की देश में आपदा प्रबंधन के साथ – साथ आपदाओं के आर्थिक दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए जीवन बीमा की तरह सम्पतियो को बीमा सुरक्षा देने के प्रस्ताव पर विचार चल रहा है |
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को मिला प्रस्ताव
आपदाओं के दौरान सम्पैयो की बीमा सुरक्षा जल्द ही सच्चाई बन जाएगी , क्योकि राष्ट्रीय आपदा प्रंधन प्राधिकरण (एन डी एम् ए ) ने इन्श्योरेंश रेगुलेटरी एन्ड डवलपमेंट अथारिटी ( आई आर डी ए ) के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है | गौरतलब है की आई आर डी ए  ने एम् डी एम् को एक परिचर्चा पत्र सौपा है , जिसका वित्त विभाग से अध्ययन करने के लिए कहा गया है | एक अन्तराष्ट्रीय आकलन के मुताबिक़ , किसी बड़ी आपदा में गैर- बीमाकृत नुकसान ८५ फीसदी होता है , इसलिए एन डी एम् ए का मानमना है की एक पूर्ण व्यवस्थित आपदा जोखिम संबंधी वित्तीय रणनीति की जरुरत है , ताकि अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुचाने वाले प्रभाव से बचा जा सके |
राज्यों पर आता है दबाव
सम्पतियो के बीमा सुरक्षा का प्रस्ताव को यह महसूस करने के बाद लाया गया है की आपदा के बाद की स्थितियों में पुननिर्माण के लिए केंद्र से मिलाने वाले धन के मुकाबले राज्यों को ज्यादा खर्च करना पड़ता है | यह विकास गतिविधियों से धनराशी के पुन: आवंटन की तरफ ले जा सकता है | गौरतलब है की आपदा के बाद होने वाला पुननिर्माण कार्य राज्य में प्राथमिकता वाले दुसरे क्षेत्र से आवंटन को छीन लेता है |
राज्यों को मिलेगी मदद
एन डी एम् ए के एक अधिकारी के मुताबिक़ , अन्तराष्ट्रीय स्तर पर मानी बेहतर व्यवस्था के अनुसार , आपदा के बाद के पुननिर्माण के ले धनराशी की जरुँरत व उपलब्धता के अंतर को बीमा सुरक्षा को लागू करते हुए पूरा किया जा सकता है | गौर तलब है की अभी स्टेट डिजाइनर रिस्पांस फंड ( एस डी ऍफ़ आर ) व नॅशनल डिजाइनर रिस्पांस फंड ( एन डी ऍफ़ आर ) के प्रावधानों के दायरे में न आने वाले राज्यों को आपदा व विभीषिका से सम्बंधित राहत खर्च पूरा करना पड़ता है | हालाकि एस डी ऍफ़ आर से होने वाले धनावंटन की तुलना में राज्यों की तरफा से होने वाला खर्च बहुत ज्यादा होता है , जिसे राज्यों को अपने संसाधनों से पूरा करना पड़ता है |
वित्त आयोग ने लिया संज्ञान
आपदाओं के लिए बीमा का पक्ष रखते हुए आई आर डी ए ने डिजाइनर रिलीफ एन्ड रिस्क ट्रांसफर थ्रू इन्श्योरेंश शीर्षक से अपने पेपर में कहा है की १३ वे वित्त आयोग ने आपदाओं के खर्च को पूरा करने के विषय पर बीमा के बारे में विचार किया था , लेकिन बीमा की पहुच बेहद सीमित होने के चलते आयोग ने कोई सिफारिस नहीं की थी | गौरतलब है की आई आर डी ए ने पानी सिफारिसो में कहा है की आपदा के बाद राहत , मरम्मत व पुननिर्माण के खर्चो को पूरा किए जाने के लिए राज्यों को बीमा खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए | आपदाओं से सम्पतियो को बीमा सुरक्षा से अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रतिकूल असर व अन्य प्राथामिकताओं के वंटन में कमी को रोकने में मदद मिलेगी |
साभार – पत्रिका एक्सपोज रायपुर २२.११.२०१३

Tuesday, 19 November 2013

विधि का शासन : नॅशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो का आंकड़ा , सुप्रीम कोर्ट ने माना देश में प्रतिवर्ष नहीं दर्ज होती ६० लाख ऍफ़ आई आर



आपराधिक गतिविधियों में पीडितो को न्याय मिलना उनका नैसर्गिक हिकार है | हालाकि जब पुलिस आपराधिक घटनाओं की प्राथमिकी ( प्रथम सूचना रिपोर्ट ) ही दर्ज न करे तो न्याय पाने का अधिकार कैसे मिल सकता है | इसे देखते हुए ही सुप्रीम कोर्ट ने सभी गंभीर अपराधो में प्राथमिकी दर्ज करना अनिवार्य बना दिया है |
प्रतिवर्ष लाखो मामलों में नहीं दर्ज होती ऍफ़ आई आर
प्राथमिकी दर्ज करने को अनिवार्य बनाने के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा की दर्ज न हो पाने वाले मामलों की संख्या प्रति वर्ष लगभग ६० लाख के आसपास होती है | सुप्रीम कोर्ट ने नॅशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो ( एन सी आर बी ) के आंकड़ो का हवाला देते हुए कहा की किसी आपराधिक मामले में ऍफ़ आई आर दर्ज होने से छल कपट रोकने में मदद मिलाती है और पूर्ववर्ती तारीख या जानबूझकर ऍफ़ आई आर दर्ज करने में डेरी के मामले में कमी आती है |
एन सी आर बी का आंकड़ा
 एन सी आर बी का आकडा है की पुरे देश में २०१२ में ६० लाख संज्ञेय आपराधिक मामले दर्ज किए गए है लेकिन दर्ज न होने वाले अपराधो की संख्या भी प्रति वर्ष ६० लाख के ही करीब होती है | कुल मिलाकर ऍफ़ आई आर दर्ज न होने वाले मामलों की संख्या बहुत ज्यादा है | यह बड़ी संख्या में पीडितो के अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है | जस्टिस पी. सथासिवम ने कहा की अपराधो को दर्ज न किए जाने का अल्पकालिक असर विधि शासन के नकारात्मक असर के टूर पर लोगो में विधि के शासन के प्रति आदर कम करता है |
पैदा होती है अराजकता
अपराधिक मामलों को दर्ज न किए जाने से समाज में अराजकता की समस्या पैदा होती है | अपराध प्रक्रिया संहिता (सी आर पी सी ) की धारा १५४ को केवल सी आर पी सी की योजना के अनुरूप नहीं, बल्कि पुरे समाज के सन्दर्भ में पढ़ा जाना चाहिए | बेंच ने कहा की आपराधिक मामलों की जांच और आरोपियों की सजा का निर्धारण राज्य के कर्तव्य है | खाश टूर पर संज्ञेय अपराधो में सी आर पी सी की धारा १५७ के तहत छुट प्राप्त मामलों को छोड़कर अन्य मामलों में ऍफ़ आई आर दर्ज करना व जांच करना पुलिस का कर्तव्य है | यदि ऍफ़ आई आर दर्ज करने में पुलिस की मर्जी , विकल्प या अन्य छुट दी जाती है , तो यह लोक व्यवस्था के लिए खतरा पैदा करता है और पीड़ित के समानता के मूल अधिकार का उल्लंघन है |
लिखित हो पुलिस कार्यवाही
सी आर पी सी की धारा १५४(१) में होगा शब्द का प्रयोग है , जो स्पष्ट करता है की इस शब्द को सामान्य अर्थ को बाध्यकारी चरित्र के साथ समझे जाने की जरुरत है | इसी आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने सभी संज्ञेय मामलों में ऍफ़ आई आर दर्ज करना अनिवार्य बनाया है | इसके अलावा ऍफ़ आई आर दर्ज करना अधिकारियों के लिए कानून टूर पर बाध्यकारी है | उसके बाद अपराध होने के संदेह की जांच कर सकता है | लोकतंत्र व स्वतन्त्रता के सिद्धांत पुलिस शक्तियों के नियमन के साथ – साथ प्रभावकारी नियंत्रण की मांग करते है | सभी गतिविधियों को दस्तावेजो में दर्ज किया जाना भी एक प्रकार का नियंत्रण ही है | अपराध संहिता के अनुसार , पुलिस की कार्यवाई लिखित और दस्तावेजो में दर्ज होनी चाहिए |
साभार – पत्रिका एक्सपोज रायपुर १७-११-१३

आई आई टी की मदद से एतिहासिक स्थलों के संरक्षण के साथ अध्ययन की कवायद

एतिहासिक इमारतों के अध्ययन के विषय पर सरकार व आई आई टी की सहभागिता को साइंस एन्ड हैरिटेज इनिशिएटिव –संधि नाम दिया गया है | आई आई टी रुढ़की के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर गौरव रहेजा के अनुसार , इसका उद्देश्य केवल मौजूदा स्वरुप को संरक्षित करना ही नहीं है बल्कि प्राचीन ज्ञान को सामने लाना भी लक्ष्य है |
नौ विरासतों के संरक्षण में आई आई टी की माँगी मदद
संस्कृति मंत्रालय ने नौ एतिहासिक स्थलों की सुरक्षा व संरक्षण में सहयोग के लिए सभी आई आई टी को आमंत्रित किया | इनमे दिल्ली का लाल किला , बिहार के राजगीर के स्तूप और मध्यप्रदेश की बाघ गुफाए शामिल है | लाल किले के लिए मंत्रालय चाहता है की आई आई टी भू जल स्तर व प्रतिरोधकता का सर्वे करे और यहाँ पर लम्बे समय से पानी के रिसाव की समस्या का निदान सुझाए | इसके अलावा तकनीकी संस्थानों से गुजरात के कच्छ के रण  के वेणुकोट में पुराणी नदी प्रणाली के जल प्रवाह व भूकंप के सबूतों की जांच के लिए कहा गया है | इसके अलावा धौलवीरा के हड़प्पा कालीन शहर और कच्छ के रण के आसपास के क्षेत्रो का गणतीय माडल तैयार करने के लिए भी कहा गया है |
ए एस आई ने भी आई आई टी की मदद का दिया सुझाव
मंत्रालय ने विहार के पुराने शहर राजगीर में स्तुपो के साथ – साथ नालंदा के पूरा अवशेषों के वैज्ञानिक अध्ययन के लिए आमंत्रित किया है | इस विषय पर हाल में सरकार की तरफ से आयोजित वर्कशाप में आर्कियोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया ( ए एस आई ) ने कहा था की स्मारकों और एतिहासिक भवनों की स्थिति का आकलन करने व उन्हें संरक्षित करने सम्बंधित उपायों के बारे में आई आई टी जैसे संस्थानों की मदद से लाभ मिल सकता है | ए एस आई के एक अधिकारी ने बताया की अन्वेषण , संरक्षण व खुदाई जैसे विभिन्न प्रोजेक्ट में आई आई टी से बहुत तरह से बड़ी मदद मिल सकती है | गौरतलब है की इससे पहले भी सरकार एतिहासिक स्थलों की सुरक्षा व संरक्षण के लिए आई आई टी जैसे संस्थानों की मदद लेती रही है |
साभार – पत्रिका एक्सपोज रायपुर १९-११-१३  





भाटापारा में चिराग द्वारा सामुदायिक गतिशीलता कार्यक्रम आयोजित

राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन नई दिल्ली एवं  छत्तीसगढ़ राज्य एड्स नियंत्रण समिति रायपुर के सहयोग से  चिराग सोशल वेलफेयर सोसायटी अम्बिकापुर द...