दहेज़ निवारण कानून
भूमिका
दहेज़ प्रथा भारतीय
समाज में कोढ़ में खाज का काम कर रही है\ दहेज़ के कारण बेटी का जन्म लेना माँ- बाप
के लिए अभिशाप बन जाता है | जहां बेटे के जन्म पर खुशियाँ मनाई जाती है वही बेटी
के जन्म पर मातम | माँ- बाप की लाचारी को देखकर हजारों लडकियां आत्म ह्त्या कर
लेती है | दहेज़ में अच्छी खासी रकम नहीं मिलने पर वर पक्ष वधुओं को कष्ट देते है |
दहेज़ के कारण वधुओं के द्वारा आत्महत्या की खबरे अक्सर समाचार पत्र एवं टी वी
न्यूज चैनल पर देखने को मिलती है
“ यत्र नार्यस्तु
पूज्यन्ते | रमन्ते तत्र देवता “
इस उक्ति में
विस्वास करने वाले समाज में नारियों को जलाना केवल अपराध ही नहीं बल्कि महापाप है
|
दहेज़ प्रथा का
उन्मूलन केवल कानून से संभव नहीं है, इसके लिए सामाजिक चेतना की जरुरत है | इस
कुप्रथा को समाप्त करने के लिए 1961 में दहेज़ प्रतिषेध अधिनियम पारित किया गया,
जिसमे दहेज़ देना या दहेज़ मांगने के लिए अभिप्रेरित करना आदि को अपराध के घेरे में
लेकर अपराधियों को सजा दिलाने का प्रावधान किया गया है, लेकिन इस अधिनियम का कोई
कारगर असर नहीं हुआ | समय – समय पर इसमे संशोधन करके इस प्रथा पर कठोर नियंत्रण
लाने की चेष्टा की गई | क्रिमिनल ला ( द्वितीय संसोधन) अधिनियम 1983 जो 25 सितम्बर 1983 को प्रभावी हुआ, के
द्वारा – पति और उसके सम्बन्धियों को सजा देने की व्यवस्था की गई, जिन्हें स्त्री
के साथ क्रूरता के व्यवहार का दोषी पाया गया | वर्ष 1984 में दहेज़ प्रतिषेध ( वर वधु को दिए गए
उपहारों की सूची का रखरखाव) नियम 1984 पारित करके उपहार के नाम पर दहेज़ लेने की
प्रवृति पर रोक लगाने का प्रयास किया गया | पुन: वर्ष 1986 में दहेज प्रतिषेध ( संसोधन) अधिनियम 1986 द्वारा दहेज़ मृत्यु
को परिभाषित करके उसके लिए कड़ी सजा की व्यवस्था की गई | दहेज़ मृत्यु कारित न करने का
साक्ष्य अधिभार भी अभियुक्त पर रखे जाने का प्रावधान किया गया |
दहेज़ क्या है : ?
दहेज़ को परिभाषित
करते हुए प्रतिषेध अधिनियम में कहा गया है की वह विवाह के लिए विवाह के पहले या
बाद में या विवाह के समय एक पक्ष के द्वारा या उसके किसी संबंधी द्वारा दुसरे पक्ष
को प्रत्यक्षा या परोक्ष रूप से कुछ मूल्यवान प्रतिभूति या सम्पत्ति दी जाती है,
वह दहेज़ कहलाता है | लेकिन मुस्लिम कानून ( शरियत) के अंतर्गत ही मेहर दिया जाता
है, वह इस परिभाषा में नहीं आता है | एसा कोई उपहार जो की विवाह करने के एवज में
नहीं दिया जाता, वह दहेज़ के अंतर्गत नहीं आता है | मूल्यवान प्रतिभूति का अर्थ इसे
दस्तावेज से है, जिसके द्वारा कोई कानूनी अधिकार सृजित, विस्तृत, अंतरित,
निर्बन्धित किया जाए या छोड़ा जाए या जिसके द्वारा कोई व्यक्ति यह भी स्वीकार करता
हो की वह कानूनी दायित्व के अंतर्गत है या नहीं |
दहेज़ अपराध के लिए
दंड की व्यवस्था :
दहेज़ लेना या देना
या दहेज़ की मांग करना दंडनीय अपराध है | दहेज़ प्रतिषेध अधिनियम में इसे गैर-
जमानतीय एवं संज्ञेय अपराध मन गया है, दहेज़ देने या लेने समबन्धी कोई भी करार अवैध
माना जाता है | उन व्यक्तियों के लिए भे सजा का प्रावधान किया गया है जो दहेज़ जैसे
अपराध को अभिप्रेरित करते है | 2 अक्तूबर 1984 से लागू नियमावली के अनुसार विवाह के
अवसर पर वर – वधु को दी जाने वाले उपहारों की सूची, देने वालों के नाम एवं वर वधु
से उसका संबंधी एवं सूची वर- वधु के हस्ताक्षर व अंगूठे का निशान के साथ रखने की
कानूनी अनिवार्यता बतायी गई है |
इस अधिनियम की धारा
8 में दहेज़ के अपराध को संज्ञेय बताते हुए पुलिस को इसकी जांच करने का पूरा अधिकार
है, किन्तु पुलिस किसी मजिस्ट्रेट के आदेश या वारंट के बिना इस अपराध में किसी
व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं करा सकती | दहेज़ कानून की धारा -3 के अनुसार दहेज़ लेने
या देने या लेन देन को अभिप्रेत करने वाले व्यक्ति के लिए कारावास एवं 15000/- या दहेज़ की धन
राशि जो भी अधिक हो , द्वारा दण्डित किया जाता है | दहेज़ संबंधी अपराध के लिए कम
से कम 5 वर्ष के कारावास का प्रावधान है |
यदि कोई व्यक्ति
सीधे या परोक्ष रूप से वर या वधु के माता – पिता या संरक्षक या एनी सम्बन्धियों से
दहेज़ की मांग करता है तो उसे 2 वर्ष तक के कारावास एवं 10000/- रु. जुर्माने के साथ
दण्डित किया जा सकता है| इसे अपराध में कम से कम 6 माह के कारावास की सजा का प्रावधान है |
दहेज़ प्रतिषेध ( संशोधन ) अधिनियम 1986 द्वारा मूल अधिनियम में ४-क जोड़कर किसी
समाचार पत्र, पत्रिका या किसी एनी माध्यम से किसी भी व्यक्ति द्वारा इसे विज्ञापन
देने पर प्रतिबन्ध है | इसका पालन नहीं करने पर हक कायम करने का प्रस्ताव करता है
| इस अताढ़ के वुग्यापन छपवाने तथा प्रकाशित करने या बताने पर इस अधिनियम की धारा –
6 में
व्यवस्था है कि स्त्री (वधु) के अलावा कोई दुसरा व्यक्ति दहेज़ लेता है तो वह विवाह
की तिथि से 3 माह के अंदर या यदि विवाह के समय वधु नाबालिक हो तो उसके 18 वर्ष की आयु
प्राप्त होने के एक वर्ष के अंदर दहेज़ के लिए राशि उसको ट्रांसफर कर देगा तथा जब
तक दहेज़ उसके पास है, वह वधु के लाभ के लिए तरसती के रूप मर रखेगा |
यदि सम्पत्ति की
अधिकारिणी स्त्री की मृत्यु ट्रांसफर से पहले हो जाती है तो सम्पत्ति पर उसके
कानूनी उतराधिकारियों का हक़ होगा | यदि ऐसी स्त्री की मृत्यु विवाह के साथ वर्ष के
भीतर असामान्य परिस्थिति में हो जाए और उसके कोई बच्चे न हो तो उस सम्पत्ति का
मालिक उसके माता पिता होंगे |
इन प्रावधानों का
उलंधन करने वाले को दो वर्ष तक का कारावास एवं 10000/- रुपे जुर्माने की सजा हो सकती है | यह
सजा कम से कम 6 माह एवं जुर्माना 50000 रु. है |
निर्धारित समय सीमा
में वधु या उसके उत्तराधिकारी या उसके माता पिता की सम्पत्ति ट्रांसफर नहीं करने
वाले व्यक्ति को केवल सजा ही नहीं होती, बल्कि उनसे सम्पत्ति के समतुल्य धन राशि
भी वसूल की जाती है|
न्यायालय द्वारा
संज्ञान
क-
इस अधिनियम के तहत आने वाले अपराधो की सुनवाई का
अधिकार मेट्रोपोलियन मजिस्ट्रेट / प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट के नीचे के
किसी भी अधिकारी के पास नहीं होता है |
ख-
इन अपराधों में न्यायालय द्वारा प्रसंज्ञान स्वंय
की जानकारी, पुलिस रिपोर्ट, अपराध से पीड़ित व्यक्ति या उसके माता पिता या एनी
संबंधितो के परिवार या किसी मान्यता प्राप्त सामाजिक संगठन / संस्था के परिवाद पर
लिया जा सकता है |
ग-
सुनवाई करने वाले मेट्रोपोलियन मजिस्ट्रेट /
प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट को इस अधिनियम के अंतर्गत आने वाले अपराधों में उस सीमा
तक दंड देने के लिए शक्ति प्रदान की गई है, जो विभिन्न अपराधों के लिए इस अधिनियम
में निर्धारित है, चाहे ये शक्तिया दंड प्रक्रिया संहिता में प्रदत्त शक्तियों से
अधिक क्यों न हो ? इस अधिनियम के अंतर्गत आने वाले अपराधों के विषय में संज्ञान
लेने के लिए कोई समय सीमा तय नहीं की है | महत्वपूर्ण प्रावधान यह है की दहेज़
संबंधी अपराध से पीड़ित व्यक्ति को उसके द्वारा दी गए किसी ब्यान के आधार पर
अभियोजित नहीं किया जा सकता है |
साक्ष्य का भार
प्राय:
आपराधिक मामलों में किसी अभियुक्त पर दोष सिद्ध करने का भार अभियोजन पक्ष पर होता
है, लेकिन इस अधिनियम की धारा -3 एवं 4 के तहत दहेज़ संबंधी मामलों में अपराध नहीं किए
जाने का साबुत पेश करने का भार अभियुक्त पर होता है |
वधु को प्राप्त उपहार
वधु को
विवाह से पहले, विवाह के समय या विवाह के बाद जो उपहार माता पिता के पक्ष से या
ससुराल पक्ष से मिलता है, उसे स्त्रीधन कहा जाता है | वधु स्त्रीधन की पुरी तरह से
मालकिन या स्वामिनी होती है|
दहेज़ के लिए वधु के साथ दुर्व्यवहार के लिए दंड
दहेज़
प्रतिषेध अधिनियम में वधु के साथ क्रूरता या उत्पीडन के व्यवहार के लिए कठोर दंड
की व्यवस्था है|
क्रूरता
के लिए पति के साथ उसके सम्बन्धियों को भी दण्डित करने का प्रावधान है , जो भारतीय
दंड संहिता की धारा 498 – क में जोड़ी गई है | धारा498- क यदि किसी स्त्री के पास उस / उन्हें पति के
रिश्तेदार उसके साथ क्रूरता का व्यवहार करता है तो तीन साल तक कारावास एवं
जुर्माने से दण्डित किया जाएगा |
क्रूरता की परिभाषा इस प्रकार है :
क-
जानबूझकर कोई ऐसा व्यवहार करना, जिससे वह स्त्री
का आत्महत्या के लिए प्रेरित करना हो या उस स्त्री के जीवन अंग या स्वास्थ्य को
गंभीर क्षति या ख़तरा पैदा हो |
ख-
किसी स्त्री को इस दृष्टि से तंग करना कि उसको या
उसके किसी रिश्तेदार को कोई सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति देने के लिए बाध्य
किया जाए या किसी स्त्री को इस कारण तंग करना कि उसका कोई रिश्तेदार ऐसी मांग पुरी
न कर पाया हो |
भारतीय
दंड संहिता में संशोधन करके एक नई धारा 304 – ख जोड़ा गया है, जिसमें “ दहेज़ मृत्यु” को
परिभाषित किया गया है
धारा 304- ख दहेज़ मृत्यु
1-
यदि किसी स्त्री कि मृत्यु किसी डाह या शारीरिक
क्षति के कारण होती है या उसके विवाह के सात वर्ष के भीतर असामान्य परिस्थियां
होती है और वह प्रदर्शित होता है कि उसकी मृत्यु के कुछ समय पहले उसके पति या पति
के किसी रिश्तेदार ने दहेज़ की मांग के लिए उसके साथ क्रूरता का व्यवहार किया है तो
ऐसी मृत्यु को दहेज़ कारित मृत्यु कहा जाता है |
2-
दहेज़ मृत्यु कारित करने वाले व्यक्ति को सात साल
से आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती है|
भारतीय
साक्ष्य अधिनियम 1972 धारा – 133 का एवं ख जोड़कर एक शक्ति दी गई है कि विवाह के सात वर्ष के भीतर किसी
स्त्री द्वारा आत्महत्या करने या दहेज़ मृत्यु के मामलों में अभियुक्त के विरुद्ध
अपराध करने की अवधारणा कर सके जब तक की अन्यथा सिद्ध न हो |
धारा – 113 क
यदि कोई
स्त्री विवाह के 7 वर्ष के भीतर आत्महत्या करती है तो न्यायालय मामले की सभी अन्य
परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए यह अवधारणा करता है कि ऐसी आत्महत्या उसके पति
या पति के किसी रिश्तेदार द्वारा दुस्प्रेरित की गई है |
धारा 113 ख
जब किसी
व्यक्ति ने अपनी स्त्री की दहेज़ मृत्यु कारित की है और दर्शित किया जाता है कि
मृत्यु के कुछ पहले इसे व्यक्ति दहेज़ की किसी मांग के लिए या उसके सम्बन्ध में उस
स्त्री के साथ क्रूरता की थी तो न्यायालय के द्वारा यह अवधारणा की जाती है की उस
व्यक्ति ने दहेज़ मृत्यु कारित की है |
इस तरह
कानून में संशोधन करके दहेज़ अपराध के लिए कठोर दंड की व्यवस्था की गई है | अत:
दहेज़ प्रथा के उन्मूलन के लिए बनाएं गए कानून का उपयोग करने की आवश्यकता है |
साभार
सरल कानूनी शिक्षा
छत्तीसगढ़ राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण बिलासपुर
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