इस संहिता की धारा
125 में भरण पोषण (खर्चा-पानी ) देने का प्रावधान है | यह मुस्लिम महिला को छोडकर
दूसरों को प्राप्त हो सकेगा | मुस्लिम महिला को तलाक के बाद इदद्त की अवधि तक यह अधिकार
होगा |
यह पत्नि, बच्चों के
अलावा बूढ़े माँ-बाप को भी प्राप्त हो सकता है , जो अपनी संतान (लड़का-लड़की) में से
किसी से भी चाहे वः शादी – शुदा हों यह प्राप्त कर सकते है |
बच्चो की अभिरक्षा
माता- पिता के जीवित
न रहने पर या माता पिता का तलाक हो जाने पर बच्चों का लालन व पालन किसके द्वारा
होगा यह तय करने के लिए “गार्जियन एंड वार्ड्स एक्ट” के नाम से एक कानून बनाया गया
है |
तलाक के बाद बच्चों
का क्या होगा :-
बच्चा अगर छोटा है
तो माँ का कानूनी अधिकार है कि सात वर्ष का होने तक बच्चा उसी के पास रहेगा | पांच
साल की उम्र के बाद बच्चा किसके पास रहेगा इस बात का निर्णय अदालत बच्चे के हित को
ध्यान में रखते हुए लेगी |
बच्चे का हित अगर
माँ के पास रहने में हो तो बच्चा माँ को दिया जाएगा | एसा स्थिति में बच्चा चाहे
पिता के साथ n रहता हो तो भी पिता को उसका खर्चा वहां करना पडेगा |
न्यायालय नाबालिक
बच्चों के शरीर व उसकी सम्पत्ति की सुरक्षा के लिए संरक्षक नियुक्ति क्र सकती है
जो न्यायालय के प्रति जबाबदेह रहता है |
सम्पत्ति का अधिकार
:
·
हर
महिला को अपने लिए, अपने नाम से सम्पत्ति खरीदने और रखने का अधिकार है | कोई महिला
सम्पत्ति को जो चाहे कर सकती है, चाहे वह सम्पत्ति उसे मिली हो या उसकी कमाई की हो
|
·
हर
महिला को यह हक है कि अपनी कमाई के पैसे वह खुद ले वः उन पैसों से जो भी कराना
चाहे कर सकती है |
·
महिलाओं
को यह भी अधिकार है कि पुरुषों की तरह वे भी सम्पत्ति खरीदे या बेचे | महिलाओं को
अपने माता- पिता या दुसरे रिश्तेदार की सम्पत्ति का हिस्सा भी मिल सकता है, यह
उनके निजी कानून पर निर्भर करता है | निजी कानून का मतलब है, वह कानून जो किसी
समुदाय पर लागू होता है | जैसे – हिन्दू कानून, मुस्लिम कानून, इसाई कानून तथा
पारसी कानून आदि |
हिन्दू स्त्रियों के
सम्पत्ति का अधिकार :
आपका हिस्सा आपका
अपना है और आप अपनी इच्छानुसार निपटारा कर सकती है | वर्ष 1956 के पहले के कानून
में हिन्दू स्त्रियों को ऐसे सम्पत्ति का पूरा अधिकार नहीं था | उन्हें सिर्फ अपने
परवरिश हेतु सम्पत्ति का इस्तेमाल करने का हक था | जिसे सीमित अधिकार कहा जाता है
| परन्तु वर्ष 1956 के बाद से महिलाओं का सम्पत्ति पर पूरा हक है |
·
कोई
महिला चाहे तो इसे बेच सकती है, चाहे तो किसी को दान या बख्शीस दे सकती है या
वसीयत में किसी के नाम छोड़ सकती है |
·
अगर
विधवा दुसरी शादी कर ले तो भी गुजरे हुए पति से मिली सम्पत्ति उसकी अपनी होगी |
·
वर्ष
2005 के हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम में संशोधन के द्वारा महिलाओं को उनकी पैतृक
सम्पत्ति में बराबर का अधिकार प्रदान किया गया है |
पत्नी के खर्चे का
अधिकार :
पत्नी को पति से
खर्चा लेने का अधिकार होता है | यदि पति पत्नी खर्चा न दे तो वह अदालत के जरिए पति
से खर्चा ले सकती है | यह अधिकार हिन्दू दत्तक और भरण -पोषण अधिनियम 1956 के
अंतर्गत दिया गया है |
यदि पत्नी किसी ठोस
कारण से पति से अलग रहती है तो भी वह पति से खर्चा मांग सकती है ऐसे निम्न कारण हो
सकता है :
·
पति ने
उसे छोड़ दिया हो
·
पति के
दुर्व्यवहार से डर कर पत्नी अलग रहने लगी हो ,
·
पति को
कोढ़ हो,
·
पति का
कोई और जीवित पत्नी हो,
·
पति का
किसी दुसरी औरत से अनैतिक सम्बन्ध हो,
·
पति ने
धर्मं बदल लिया हो
किन्तु
अगर पत्नी व्याभिचारिणी हो या वह धर्मं बदल ले तो वह खर्चा मांगने की हकदार नहीं
रहती |
बच्चों, बूढ़े या
दुर्बल माता-पिता का खर्चा पाने का अधिकार :-
हिन्दू दत्तक तथा
भरण – पोषण अधिनियम 1956 तथा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत जायज और
नाजायज नाबालिक ( 18 वर्ष से कम उम्र ) बच्चों को माता पिता से खर्च मिलने का हक
है | बूढ़े या शारीरिक रूप से दुर्बल माँ – बाप को अपने बच्चे से ( बेटे हो या
बेटिया ) खर्चा मिलने का हक है यह खर्चा लेने का हक सिर्फ ऐसे लोगों को है जो अपनी
कमाई या सम्पत्ति से अपना खर्च नहीं चला
सकते |
विधवा को खर्च पाने
का अधिकार :-
( हिन्दू दत्तक तथा
भरण पोषण अधिनियम 1956)
हिन्दू विधवा अपनी
कमाई या सम्पत्ति से खर्च नहीं चला सकती हो तो उसे इन लोगों से खर्चा मिलने का हक़
है :-
·
पति की
सम्पत्ति में से या अपने माता पिता की सम्पत्ति से |
·
अपने
बेटे या बेटी से उनकी सम्पत्ति में से |
·
इन
लोगों से यदि खर्चा न मिले तो उसके ससुर को उसका खर्चा देना होगा |
:साभार :
*सरल क़ानूनी शिक्षा*
छत्तीसगढ़
राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण
बिलासपुर
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