Wednesday, 22 August 2018

महिलाओं के कानूनी अधिकार – 2 दण्ड प्रक्रिया (जाब्ता फौजदारी ) संहिता


इस संहिता की धारा 125 में भरण पोषण (खर्चा-पानी ) देने का प्रावधान है | यह मुस्लिम महिला को छोडकर दूसरों को प्राप्त हो सकेगा | मुस्लिम महिला को तलाक के बाद इदद्त की अवधि तक यह अधिकार होगा |
यह पत्नि, बच्चों के अलावा बूढ़े माँ-बाप को भी प्राप्त हो सकता है , जो अपनी संतान (लड़का-लड़की) में से किसी से भी चाहे वः शादी – शुदा हों यह प्राप्त कर सकते है |
बच्चो की अभिरक्षा
माता- पिता के जीवित न रहने पर या माता पिता का तलाक हो जाने पर बच्चों का लालन व पालन किसके द्वारा होगा यह तय करने के लिए “गार्जियन एंड वार्ड्स एक्ट” के नाम से एक कानून बनाया गया है | 
तलाक के बाद बच्चों का क्या होगा :-
बच्चा अगर छोटा है तो माँ का कानूनी अधिकार है कि सात वर्ष का होने तक बच्चा उसी के पास रहेगा | पांच साल की उम्र के बाद बच्चा किसके पास रहेगा इस बात का निर्णय अदालत बच्चे के हित को ध्यान में रखते हुए लेगी |
बच्चे का हित अगर माँ के पास रहने में हो तो बच्चा माँ को दिया जाएगा | एसा स्थिति में बच्चा चाहे पिता के साथ n रहता हो तो भी पिता को उसका खर्चा वहां करना पडेगा |
न्यायालय नाबालिक बच्चों के शरीर व उसकी सम्पत्ति की सुरक्षा के लिए संरक्षक नियुक्ति क्र सकती है जो न्यायालय के प्रति जबाबदेह रहता है |
सम्पत्ति का अधिकार :
·         हर महिला को अपने लिए, अपने नाम से सम्पत्ति खरीदने और रखने का अधिकार है | कोई महिला सम्पत्ति को जो चाहे कर सकती है, चाहे वह सम्पत्ति उसे मिली हो या उसकी कमाई की हो |
·         हर महिला को यह हक है कि अपनी कमाई के पैसे वह खुद ले वः उन पैसों से जो भी कराना चाहे कर सकती है |
·         महिलाओं को यह भी अधिकार है कि पुरुषों की तरह वे भी सम्पत्ति खरीदे या बेचे | महिलाओं को अपने माता- पिता या दुसरे रिश्तेदार की सम्पत्ति का हिस्सा भी मिल सकता है, यह उनके निजी कानून पर निर्भर करता है | निजी कानून का मतलब है, वह कानून जो किसी समुदाय पर लागू होता है | जैसे – हिन्दू कानून, मुस्लिम कानून, इसाई कानून तथा पारसी कानून आदि |
हिन्दू स्त्रियों के सम्पत्ति का अधिकार :
आपका हिस्सा आपका अपना है और आप अपनी इच्छानुसार निपटारा कर सकती है | वर्ष 1956 के पहले के कानून में हिन्दू स्त्रियों को ऐसे सम्पत्ति का पूरा अधिकार नहीं था | उन्हें सिर्फ अपने परवरिश हेतु सम्पत्ति का इस्तेमाल करने का हक था | जिसे सीमित अधिकार कहा जाता है | परन्तु वर्ष 1956 के बाद से महिलाओं का सम्पत्ति पर पूरा हक है |
·         कोई महिला चाहे तो इसे बेच सकती है, चाहे तो किसी को दान या बख्शीस दे सकती है या वसीयत में किसी के नाम छोड़ सकती है |
·         अगर विधवा दुसरी शादी कर ले तो भी गुजरे हुए पति से मिली सम्पत्ति उसकी अपनी होगी |
·         वर्ष 2005 के हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम में संशोधन के द्वारा महिलाओं को उनकी पैतृक सम्पत्ति में बराबर का अधिकार प्रदान किया गया है |  
पत्नी के खर्चे का अधिकार :
पत्नी को पति से खर्चा लेने का अधिकार होता है | यदि पति पत्नी खर्चा न दे तो वह अदालत के जरिए पति से खर्चा ले सकती है | यह अधिकार हिन्दू दत्तक और भरण -पोषण अधिनियम 1956 के अंतर्गत दिया गया है |
यदि पत्नी किसी ठोस कारण से पति से अलग रहती है तो भी वह पति से खर्चा मांग सकती है ऐसे निम्न कारण हो सकता है :
·         पति ने उसे छोड़ दिया हो
·         पति के दुर्व्यवहार से डर कर पत्नी अलग रहने लगी हो ,
·         पति को कोढ़ हो,
·         पति का कोई और जीवित पत्नी हो,
·         पति का किसी दुसरी औरत से अनैतिक सम्बन्ध हो,
·         पति ने धर्मं बदल लिया हो
किन्तु अगर पत्नी व्याभिचारिणी हो या वह धर्मं बदल ले तो वह खर्चा मांगने की हकदार नहीं रहती |
बच्चों, बूढ़े या दुर्बल माता-पिता का खर्चा पाने का अधिकार :-
हिन्दू दत्तक तथा भरण – पोषण अधिनियम 1956 तथा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत जायज और नाजायज नाबालिक ( 18 वर्ष से कम उम्र ) बच्चों को माता पिता से खर्च मिलने का हक है | बूढ़े या शारीरिक रूप से दुर्बल माँ – बाप को अपने बच्चे से ( बेटे हो या बेटिया ) खर्चा मिलने का हक है यह खर्चा लेने का हक सिर्फ ऐसे लोगों को है जो अपनी कमाई या सम्पत्ति से अपना  खर्च नहीं चला सकते |
विधवा को खर्च पाने का अधिकार :-
( हिन्दू दत्तक तथा भरण पोषण अधिनियम 1956)
हिन्दू विधवा अपनी कमाई या सम्पत्ति से खर्च नहीं चला सकती हो तो उसे इन लोगों से खर्चा मिलने का हक़ है :-
·         पति की सम्पत्ति में से या अपने माता पिता की सम्पत्ति से |
·         अपने बेटे या बेटी से उनकी सम्पत्ति में से |
·         इन लोगों से यदि खर्चा न मिले तो उसके ससुर को उसका खर्चा देना होगा |

                                                                :साभार :
                                                      *सरल क़ानूनी शिक्षा*
                                       छत्तीसगढ़ राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण
                                                                बिलासपुर

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