यह अधिनियम महिलाओं के सवैधानिक एवं कानूनी अधिकारों
के संरक्षण के लिए भारतीय संसद द्वारा पारित किया गया है | इस अधिनियम के पारित
करने का उद्देश्य महिलाओं को घरेलु हिंसा से बचाना व उनके सवैधानिक अधिकारों की
रक्षा करना है |
घरेलू हिंसा क्या है
?
इस अधिनियम के
अनुसार घरेलु हिंसा सम्बन्ध :
प्रतिवादी के किसी
कार्य, लोप या आचरण से है जिससे व्यथित व्यक्ति के स्वास्थ्य, सुरक्षा, जीवन या
किसी अंग को हानि या नुकसान हो | इसमे शारीरिक एवं मानसिक उत्पीडन, लैंगिक, शोषण,
मौखिक और भावनात्मक शोषण व आर्थिक उत्पीडन शामिल है | व्यथित व्यक्ति और उसके किसी
संबंधी को दहेज़ या किसी अन्य सम्पत्ति की मांग के लिए हानि या नुकसान पहुचना भी
इसके अंतर्गत आता है |
शारीरिक उत्पीडन
शारीरिक उत्पीडन का
अर्थ है ऐसा कार्य जिससे व्यथित व्यक्ति को शारीरिक हानि, दर्द हो या उसके जीवन
स्वास्थ्य एवं अंग को ख़तरा हो |
मौखिक और भावनात्मक
उत्पीडन
महिला को अपमानित
कराना, बच्चा न होने, व लड़का पैदा न होने पर ताने मारना आदि और महिला के किसी
संबंधी को मारने पीटने की धमकी देना |
आर्थिक उत्पीडन
आर्थिक उत्पीडन का
मतलब है महिला को किसी आर्थिक एवं वित्तीय साधन जिसकी वह हकदार है, उससे वंचित
करना, स्त्रीधन व कोई भी सम्पत्ति जिसकी वह अकेली अथवा किसी अन्य व्यक्ति के साथ
हकदार हो, आदि को महिला को n देना या उस सम्पत्ति को उसकी सहमती के बिना बेच देना
आदि आर्थिक उत्पीडन की श्रेणी में आते है |
उपरोक्त सभी कृत्यों
को घरेलु हिंसा माना गया है |
इस अधिनियम के
अंतर्गत केवल पत्नी ही नहीं बल्कि बहन, विधवा, माँ अथवा परिवार के किसी भी सदस्य
पर शारीरिक, मानसिक, लैंगिक, भावनात्मक एवं आर्थिक उत्पीडन को घरेलु हिंसा माना
गया है |
इस अधिनियम के
अंतर्गत निम्नलिखित परिभाषाएं भी दी गई है –
पीड़ित व्यक्ति – ऐसी कोई महिला जिसका प्रतिवादी से पारिवारिक
सम्बन्ध हो या रह चुका हो और जिसको किसी प्रकार की घरेलु हिंसा से प्रताड़ित किया
जाता हो |
घरेलु हिंसा की
रिपोर्ट – इसका अर्थ है वह
रिपोर्ट जो पीड़ित व्यक्ति द्वारा घरेलु हिंसा की सूचना देने पर एक विहित प्रारूप
में तैयार की जाती है |
घरेलु सम्बन्ध – दो व्यक्ति जो साथ में रहते हो या कभी गृहस्थी
में एक साथ रहे हों या सम्बन्ध संगोत्रता, विवाह या गोद लिए जाने के द्वारा या
परिवार के सदस्यों का संयुक्त परिवार में रहने से हो सकता है, उसको घरेलूं सम्बन्ध
कहते है |
गृहस्थी में हिस्सा – इसका अर्थ है जहां पर व्यथित व्यक्ति घरेलू
सम्बन्ध के द्वारा अकेले या प्रतिवादी के साथ रहता है या रहता था | इसके अंतर्गत
वह घर जो की संयुक्त रूप से व्यथित व्यक्ति या प्रतिवादी का हो या किराए पर हो ,
या दोनों का या किसी एक पक्षा का उसमे कोई अधिकार हक़, हित और ऐसा घर जो प्रतिवादी
के संयुक्त परिवार का हो, चाहे उसमे प्रतिवादी और व्यथित व्यक्ति का कोई अधिकार
हक, हित हो या न हो |
संरक्षण अधिकारी – इस अधिनियम के अंतर्गत राज्य सरकार हर जिले में
एक या जितने वह उचित समझे संरक्षण अधिकारी की नियुक्ति करेगी, जो इस अधिनियम के
अनुसार कर्तव्यों का पालन करेगा | जहां तक हो सके वह अधिकारी महिला होनी चाहिए |
सेवा प्रदान करने
वाली संस्थाएं ( सर्विस प्रोवाइडर ) इस अधिनियम के अंतर्गत स्वेच्छिक संस्थाएं जो सोसाइटीज रजिस्ट्रेशन (
पंजीकरण ) अधिनियम या कम्पनीज अधिनियम अथवा किसी अन्य अधिनियम के अंतर्गत
रजिस्टर्ड हों, और जिसका उद्देश्य महिलाओं के अधिकार, उनके हितों की रक्षा करना
होगा तभी वह इस अधिनियम के अंतर्गत सेवा सुविधा उपलब्ध कराने योग्य समझे जाएंगे |
शिकायत दर्ज कराने
की प्रक्रिया – घरेलु हिंसा का
शिकार हो रही महिला या संरक्षण अधिकारी या जो व्यक्ति इस प्रकार की गतिविधियों को
देखा रहा है, मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत दर्ज करा सकता है |
·
आवेदन
पत्र मिलने के बाद मजिस्ट्रेट द्वारा सुनवाई की तारीख घोषित की जाएगी जो आवेदन
पत्र मिलने के तीन दिन के भीतर हो सकती है |
·
प्रार्थन
पत्र का फैसला मजिस्ट्रेट द्वारा 60 दिन के अंदर कर दिया जाएगा | मजिस्ट्रेट
सुनवाई की तारीख संरक्षण अधिकारी को देगा |
·
इसके
बाद संरक्षण अधिकारी प्रतिवादियों को सुनवाई की तारीख की सूचना दो दिनों के अंदर
या मजिस्ट्रेट के आदेशानुसार देगा |
·
ऐसे
मामलों की सुनवाई इन कैमरा ( बंद न्यायालय ) में भी की जाएगी |
अधिनियम के अंतर्गत
दिए जाने वाले आदेश
1-
संरक्षण
से सम्बंधित आदेश
अगर मजिस्ट्रेट को
लगता है कि किसी जगह हिंसा की घटना घटित हुई है तो वह प्रतिवादी पर निम्नलिखित
प्रतिबन्ध लगा सकता है :-
·
किसी भी
प्रकार की घरेलु हिंसा की घटना करने से या उसमे मदद करने से |
·
उस
स्थान में प्रवेश करने से जिसमे व्यथित महिला निवास करा रही हो और व्यथित व्यक्ति
यदि कोई बच्चा है तो उसके स्कुल में प्रवेष करने से |
·
व्यथित
व्यक्ति से किसी भी प्रकार का सम्पर्क स्थापित करने जैसे बातचीत , पत्र या टेलीफोन
आदि |
·
प्रतिवादी
को अपनी सम्पत्ति या संयुक्त सम्पत्ति को बेचने से और बैंक लाकर, खाते आदि जो
संयुक्त या निजी हो उसके प्रयोग से भी रोका जा सकता है | महिला पर आश्रित उसके
सम्बन्धियों व पीड़ित महिला की सहायता करने वाले व्यक्तियों के विरुद्ध किसी भी
प्रकार की हिंसा करने से भी रोका जा सकता है |
2-
निवास
स्थान संबंधी आदेश
आवेदन पत्र मिलने
पत्र यदि मजिस्ट्रेट को लगता है कि महिला घरेलु हिंसा का शिकार है तो प्रतिवादी के
विरुद्ध निम्नलिखित आदेश पारित कर सकता है :-
·
जिस घर
में महिला निवास कर रही है प्रतिवादी उसे वहां से नहीं निकाले |
·
प्रतिवादी
और उसके किसी रिश्तेदार को महिला के निवास स्थान में घुसाने से रोका जा सकता है |
·
प्रतिवादी
को उस घर को बेचने या किसी को देने से भी रोका जा सकता है |
·
प्रतिवादी
को पीड़ित महिला के लिए अलग से घर की व्यवस्था करने उसका किराया देने आदि का भी
आदेश दिया जा सकता है |
·
पीड़ित व
बच्चे की सुरक्षा के लिए मजिस्ट्रेट जो उचित समझे प्रतिवादी को आदेश दे सकता है |
·
मजिस्ट्रेट
प्रतिवादी को पीड़ित महिला का स्त्रीधन, अन्य सम्पत्ति वापस करने का आदेश भी दे
सकता है |
3-
अभिरक्षा
संबंधी आदेश
मजिस्ट्रेट संरक्षण
या अन्य राहत के लिए दिए गए आवेदन की सुनवाई के समय पीड़ित व्यक्ति को अपने बच्चो
को अस्थाई रूप में अपने पास रहने का भी आदेश दे सकता है | प्रतिवादी को बच्चों से
मिलने से भी रोका जा सकता है, यदि मजिस्ट्रेट को लगता है की यह बच्चों के हित में
नहीं है |
4-
आर्थिक
राहत
मजिस्ट्रेट ऐसे
मामलों में आर्थिक राहत के आदेश भी दे सकता है जिससे व्यथित व्यक्ति अपना व अपने
बच्चे का खर्च पूरा कर सके और ऐसी आर्थिक राहत में कई चीजे सम्मिलित हो सकती है |
जैसे 1- आय का नुकसान | 2- चिकित्सकीय खर्च | 3- किसी सम्पत्ति जिस पर व्यथित
व्यक्ति का नियंत्रण हो , उसका नुक्सान, बर्बादी या उस समाप्ति से उसे निकाल देने
का हर्जाना और , 4- भरण – पोषण के लिए आदेश | ऐसी आर्थिक राहत मजिस्ट्रेट एक मुश्त
या मासिक क़िस्त के रूप में देने का आदेश पारित कर सकता है |
5-
मुआवजे
से संबंधी आदेश
मजिस्ट्रेट इस
अधिनियम में दी गई राहत के अलावा प्रतिवादी को पीड़ित व्यक्ति को हुई मानसिक,
भावनात्मक पीड़ा के लिए भी मुआवजे का आदेश दे सकता है |
6-
सलाह और
विशेषज्ञ की मदद
मजिस्ट्रेट एक पक्ष के लिए या दोनों पक्षों के
लिए सलाह के आदेश दे सकता है | सहायता के लिए किसी विशेषज्ञ की मदद भी ली जा सकती
है |
अन्य आदेश
v मजिस्ट्रेट प्रतिवादी को उत्पीडित महिला को
आर्थिक सहायता देने का आदेश दे सकता है|
v यदि मजिस्ट्रेट को आवेदन पत्र मिलने पर यह लगता
है कि महिला घरेलु हिंसा से पीड़ित है तो वह प्रतिवादी की अनुपस्थिति में उसके
विरुद्ध आदेश पारित कर सकता है |
v मजिस्ट्रेट अंतरिम आदेश भी पारित कर सकता है | इस
अधिनियम के अंतर्गत दिए गए आदेश की निशुल्क कापी दोनों पक्षों, सम्बंधित पुलिस
अधिकारी, सहायता प्रदान कराने वाले संगठन जो न्यायालय के क्षेत्राधिकार में हो,
तथा घरेलु हिंसा के बारे में जानकारी देने वाले संगठन को दी जाएगी |
v इस अधिनियम के अंतर्गत मिलने वाली राहत के अलावा
या इसके साथ पीड़ित महिला प्रतिवादी के विरुद्ध दीवानी न्यायालय, पारिवारिक या
अपराधिक न्यायालय में भी वाद दायर कर सकती है |
v राज्य सरकार इस अधिनियम के अंतर्गत आश्रय गृह
अधिसूचित करेगी |
v पीड़ित महिला ऐसे आश्रय गृहों में भी आश्रय ले
सकती है | ऐसे आश्रय गृहों के संचालकों का दायित्व है कि वह पीड़ित महिला को आश्रय
दे |
v पीड़ित महिलाओं को चिकित्सीय सुविधा का भी अधिकार
है | प्रत्येक चिकित्सक का कर्तव्य है कि वह उन्हें जरुरी चिकित्सीय सुविधा प्रदान
करे|
संरक्षण अधिकारी के
कर्तव्य
1-
इस
अधिनियम में दिए गए मजिस्ट्रेट के कार्यों को पूरा करने में उसकी मदद करे |
2-
घरेलु
हिंसा की शिकायत मिलने पर एक घरेलु घटना रिपोर्ट करे | संरक्षण अधिकारी यह रिपोर्ट
मजिस्ट्रेट और पुलिस अधिकारी को देगा |
3-
उत्पीडित
महिला को विधिक सेवा प्राधिकरण 1987 के अंतर्गत निशुल्क विधिक सेवा उपलब्ध कराएगा
|
4-
उन सभी
गैर सरकारी संस्थानों की सूची तैयार करेगा जो पीड़ित को निशुल्क विधिक
सेवा,चिकित्सा सेवा तथा आश्रय गृह उपलब्ध कराते है |
5-
पीड़ित
व्यक्ति को सुरक्षित आश्रय ग्रिग प्राप्त करवाना और जरूरत हो तो एसा करने की
रिपोर्ट पुलिस स्टेशन एवं मजिस्ट्रेट जिसके क्षेत्राधिकार में ऐसा आश्रय गृह है
उनको देगा|
6-
पीड़ित
व्यक्ति की चिकित्सीय जांच करवाएगा और जांच रिपोर्ट पुलिस थाणे में मजिस्ट्रेट को
देगा |
सरकार के कर्तव्य
इस अधिनियम के
अंतर्गत केन्द्रीय और राज्य सरकार के निम्नलिखित कर्तव्य है :-
1-
अधिनियम
के बारे में लोगो को जागरुक करना,
2-
सम्बंधित
अधिकारियों को प्रशिक्षित करने की व्यवस्था करना,
3-
विभिन्न
विभागों जैसे विधि मंत्रालय, स्वास्थ्य मंत्रालय, मानव संसाधन विकास मंत्रालय व
सम्बंधित विभागों के बीच सामंजस्य स्थापित करना |
4-
उन सभी
गैर सरकारी संस्थानों की सूची तैयार करेगा जो पीड़ित को निशुल्क विधिक सेवा,
निशुल्क चिकित्सा सेवा तथा आश्रय गृह उपलब्ध कराते है |
सेवा प्रदान करने वाली संस्थाओं ( सर्विस
प्रोवाइडर ) के कर्तव्य :
·
पीड़ित
व्यक्ति के कहने पर घरेलु हिंसा की घटना की रिपोर्ट तैयार करना व उस क्षेत्र के
संरक्षण अधिकारी व मजिस्ट्रेट को भेजना |
·
पीड़ित
व्यक्ति की चिकित्सकीय जांच करवाना व उसकी रिपोर्ट संरक्षण अधिकारी, व क्षेत्र के
पुलिस स्टेशन में देना |
·
पीड़ित
व्यक्ति के कहने पर उसे आश्रय गृह में आश्रय प्रदान करवाना व ऐसे आश्रय गृहों की
रिपोर्ट सम्बंधित पुलिस स्टेशन में देना |
इस अधिनियम के अंतर्गत जारी किए गए आदेशों की
पूर्ति n करने पर निम्नलिखित दण्ड का प्रावधान है : -
·
ऐसे में
प्रतिवादी को अधिकतम एक वर्ष की जेल अथवा 20,00 0 रुपए का जुर्माना या दोनों हो
सकते है ,
·
भारतीय
दण्ड संहिता 1860 की धारा 498 –ए या दहेज़ निषेध अधिनियम 1961 के अंतर्गत आरोप
लगाया जा सकता है |
·
संरक्षण
अधिकारी द्वारा कर्तव्यों की पूर्ति n करने पर ऐसे संरक्षण अधिकारी को अधिकतम एक
वर्ष की जेल या 20,00 0 रुपए जुर्माना या दोनों हो सकते है |
शिकायत कहाँ दर्ज करा सकते है :
न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी या
मेत्रोपोलोइयन मजिस्ट्रेट जिसके क्षेत्राधिकार में : -
1-
पीड़ित
महिला जहां स्थाई या अस्थाई रूप से रह रही हो या व्यवसाय अथवा नौकरी करती हो या
2-
प्रतिवादी
जहां रहा रहा हो या व्यवसाय या नौअकरी कर रहा हो या ,
3-
जहां पर
विवाद का कारण उत्पन्न हुआ हो |
इस अधिनियम के
अंतर्गत न्यायिक मजिस्ट्रेट संरक्षण आदेश तथा अन्य आदेश भी पारित कर सकता है |
:साभार :
*सरल क़ानूनी शिक्षा*
छत्तीसगढ़
राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण
बिलासपुर
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