Thursday, 17 October 2013

भ्रष्टाचार व् सौ दिन काम नहीं मिलने की खबरे नई नहीं है

प्रदेश में महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना (मनारेगा ) में भ्रष्टाचार व् सौ दिन काम नहीं मिलाने की खबरे नई नहीं है .हर बार कोई शिकायत या आरोप सामने आने के साथ ही जनता मनारेगा के प्रति प्रदेश सरकार की उदाशीनता के बारे में सोचने पर मजबूर हो जाती है .माओवाद प्रभावित बस्तर क्षेत्र में मनारेगा के तहत सौ दिन रोजगार मुहैय्या न कराना आदिवासियों की उपेक्षा की पराकाष्ठा है .कांग्रेस द्वारा वर्ष २०११,२०१२,२०१३ में महज १.८७, २.९४, ३.८९ प्रतिशत परिवारों को रोजगार मिलने के आंकड़े जारी किये गए है , तो यह आरोप बहद गंभीर है. क्योकि बस्तर की जनता न केवल माओवादियों व् पुलिस के बीच पीस रही है ,बल्कि बुनियादी सुविधाओ और रोजी रोटी के लिए भी तरस रही है .बस्तर क्षेत्र में तीन वर्षो से प्रति वर्ष औसत ४.९५ प्रतिशत परिवारों को ही सौ दिन का रोजगार मिलाने से यह सवाल उठाना लाजिमी है की क्या आदिवासियों की हितैषी होने का ढिंढोरा पीटने वाली सरकार ऐसी होती है ? क्या यही है सरकार की निति ,जो सौ दिन रोजगार न दे पाए और डेढ़ सौ दिन रोजगार देने का दावा करे ? केंद्र सरकार सेमानारेगा की भरपूर राशि मिलाने के बावजूद सभी जरुरतमंदो को सौ दिन रोजगार दिलाने में आखिर प्रदेश सरकार को क्या परेशानी है ? हर जिले में मनारेगा का काम मिले ,समय पर मजदूरी का भुगतान हो , इसमे किसके स्वार्थ आड़े आते है ? मनारेगा जैसी जनकल्याणकारी योजना में काम नहीं मिलने से हजारो ग्रामीण रोजगार के लिए भटक रहे है , पलायन कर रहे है , लेकिन यह सरकार के नुमाइंदे और नौकरशाहो को नजर कैसे नहीं आता ?

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