छत्तीसगढ़ सरकार ने प्रदेश की खेती को तबाह कर
वहां कारखानों की फसल लगाने की पूरी तैयारी कर ली है। खेती की जमीन पर अब
तक उद्योग लगाना मुश्किल था। सरकार ने अब ऎसे नियम बना दिए हैं कि एक पत्र
से कृषि भूमि का औद्योगिक प्रयोजन के लिए
डायवर्सन हो जाएगा। सरकार ने नियम बनाने में तो हड़बड़ी दिखाई ही है,
आनन-फानन में छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता में संशोधन कर दिया गया है।
सरकार ने बड़ी खामोशी से पिछले विधानसभा सत्र के दौरान छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता संशोधन विधेयक पारित कराया था। इस पर राज्यपाल के दस्तखत हो गए हैं। इसमें कृषि भूमि के डायवर्सन को रोकने के लिए बनाए गए सख्त नियम हटा दिए गए हैं।
संशोधन इस तरह किया गया है कि कोई भी कारखाना प्रबंधन खेती की जमीन पर उद्योग लगाने की जानकारी सक्षम अधिकारी को देगा और कृषि भूमि का प्रयोजन (लैंड यूज) बदल दिया जाएगा। इस नए नियम का नोटिफिकेशन करने की तैयारी है।
केवल इनमें डायवर्सन : उद्योग लगाने के लिए कृषि जमीन के डायवर्सन की बाध्यता पूरी तरह से हटाई जा रही है। केवल कुछ ही प्रयोजनों के लिए मसलन व्यावसायिक, आवासीय आदि के लिए लोगों को पहले की तरह भूमि का डायवर्सन कराना जरूरी होगा।
दबाव में बनाई नीति : माना जा रहा है कि कुछ औद्योगिक घरानों के दबाव में सरकार ने नियम बदला है। उद्योगपतियों के दबाव में ही ग्रामीणों पर नियमों का शिकंजा ऎसा कसा है कि वे चाहकर भी खेत पर कारखाने का विरोध नहीं कर पाएंगे।
बिना चर्चा के पारित : राज्य सरकार ने बीते विधानसभा सत्र में काफी शोर-शराबे के बीच यह संशोधन विधेयक रखा। जीरम घाटी तथा अन्य मुद्दों पर सदन में गतिरोध तथा विपक्ष के जोरदार विरोध के बावजूद बहुमत के कारण विधेयक पारित हो गया।
इस तरह लगेगा खेतों में संयंत्र
भू-राजस्व संहिता की धारा-172 की उपधारा (1) के तहत औद्योगिक प्रयोजन के लिए भूस्वामी द्वारा सक्षम प्राधिकारी को दी गई लिखित जानकारी पर्याप्त होगी। ऎसे डायवर्सन के लिए किसी भी तरह की अनुमति नहीं लेनी होगी। उद्योगों के लिए राह आसान करने के मकसद से मूल अधिनियम की धारा-172 की उप धारा (6-क) का लोप कर दिया गया है। नया नियम बनने के बाद उद्योगपति छत्तीसगढ़ के किसी भी गांव में उद्योग खड़ा कर सकेंगे।
कठिन था कारखाना लगाना
अब तक खेती की जमीन का लैंड यूज औद्योगिक प्रयोजन के लिए बदलना काफी मुश्किल काम था। ग्रामीणों के विरोध के कारण उद्योगपति गांवों में उद्योग लगाने से परहेज करते थे। यदि डायवर्सन हो भी गया, तो विरोध की वजह से फैसला बदलना पड़ता था। लेकिन अब ग्रामीणों पर कानूनी शिकंजा कस जाएगा। वे चाहकर भी उद्योग का ज्यादा विरोध नहीं कर सकेंगे। उनके विरोध के दमन के लिए उद्योगपतियों के साथ पूरा सिस्टम खड़ा होगा।
सरकार ने बड़ी खामोशी से पिछले विधानसभा सत्र के दौरान छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता संशोधन विधेयक पारित कराया था। इस पर राज्यपाल के दस्तखत हो गए हैं। इसमें कृषि भूमि के डायवर्सन को रोकने के लिए बनाए गए सख्त नियम हटा दिए गए हैं।
संशोधन इस तरह किया गया है कि कोई भी कारखाना प्रबंधन खेती की जमीन पर उद्योग लगाने की जानकारी सक्षम अधिकारी को देगा और कृषि भूमि का प्रयोजन (लैंड यूज) बदल दिया जाएगा। इस नए नियम का नोटिफिकेशन करने की तैयारी है।
केवल इनमें डायवर्सन : उद्योग लगाने के लिए कृषि जमीन के डायवर्सन की बाध्यता पूरी तरह से हटाई जा रही है। केवल कुछ ही प्रयोजनों के लिए मसलन व्यावसायिक, आवासीय आदि के लिए लोगों को पहले की तरह भूमि का डायवर्सन कराना जरूरी होगा।
दबाव में बनाई नीति : माना जा रहा है कि कुछ औद्योगिक घरानों के दबाव में सरकार ने नियम बदला है। उद्योगपतियों के दबाव में ही ग्रामीणों पर नियमों का शिकंजा ऎसा कसा है कि वे चाहकर भी खेत पर कारखाने का विरोध नहीं कर पाएंगे।
बिना चर्चा के पारित : राज्य सरकार ने बीते विधानसभा सत्र में काफी शोर-शराबे के बीच यह संशोधन विधेयक रखा। जीरम घाटी तथा अन्य मुद्दों पर सदन में गतिरोध तथा विपक्ष के जोरदार विरोध के बावजूद बहुमत के कारण विधेयक पारित हो गया।
इस तरह लगेगा खेतों में संयंत्र
भू-राजस्व संहिता की धारा-172 की उपधारा (1) के तहत औद्योगिक प्रयोजन के लिए भूस्वामी द्वारा सक्षम प्राधिकारी को दी गई लिखित जानकारी पर्याप्त होगी। ऎसे डायवर्सन के लिए किसी भी तरह की अनुमति नहीं लेनी होगी। उद्योगों के लिए राह आसान करने के मकसद से मूल अधिनियम की धारा-172 की उप धारा (6-क) का लोप कर दिया गया है। नया नियम बनने के बाद उद्योगपति छत्तीसगढ़ के किसी भी गांव में उद्योग खड़ा कर सकेंगे।
कठिन था कारखाना लगाना
अब तक खेती की जमीन का लैंड यूज औद्योगिक प्रयोजन के लिए बदलना काफी मुश्किल काम था। ग्रामीणों के विरोध के कारण उद्योगपति गांवों में उद्योग लगाने से परहेज करते थे। यदि डायवर्सन हो भी गया, तो विरोध की वजह से फैसला बदलना पड़ता था। लेकिन अब ग्रामीणों पर कानूनी शिकंजा कस जाएगा। वे चाहकर भी उद्योग का ज्यादा विरोध नहीं कर सकेंगे। उनके विरोध के दमन के लिए उद्योगपतियों के साथ पूरा सिस्टम खड़ा होगा।
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